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अब फोटो खींचकर पैसे कमाइए...

आप अच्छे फोटोग्राफर हो और जबरदस्त फोटो खींचते हो... आप उन फोटो का क्या करते हो??... यदि आप प्रोफेशनल फोटोग्राफर हैं, तब तो आप फोटो से पैसे कमाने के बहुत सारे तरीके जानते ही हो... लेकिन यदि आप प्रोफेशनल फोटोग्राफर नहीं हैं, तो मुझे उम्मीद है कि आप केवल फेसबुक पर ही फोटो डालते होंगे... उनसे आपको थोड़े-से लाइक और थोड़ी-सी वाहवाही मिल जाती है और बात खत्म... मैक्सिमम लोग ऐसा ही करते हैं... इन मैक्सिमम में हम भी हैं... इससे अच्छा है कि किसी स्टॉक वेबसाइट पर फोटो डालिए... और पैसे कमाइए... लेकिन स्टॉक वेबसाइट कैसे काम करती हैं??... अगर किसी को किसी पर्टिकुलर टाइप के फोटो की आवश्यकता है, तो उसे क्या करना चाहिए???... एक तरीका तो यह है कि गूगल पर सर्च कर ले और फोटो डाउनलोड कर ले... लेकिन ऐसा करना कई बार गैर-कानूनी होता है... कॉपीराइट का इश्यू सामने आ जाता है... कॉपीराइट उल्लंघन की वजह से बेइज्जती भी हो जाती है... खासकर जब डाउनलोड करने वाला व्यक्ति बहुत सम्मानित हो या कोई संस्था या ब्रांड हो... ये लोग कभी नहीं चाहेंगे कि एक छोटी-सी बात की वजह से उनकी बेइज्जती हो... तो ये लोग अच्छे फोटोग्राफर को ढूंढ

ये लोग गलती से Indian बन गए और आज तक Indian हैं

Source आजकल मैं एक किताब पढ़ रहा हूँ - Walking the Amazon... इसमें लेखक ने अमेजन नदी के उद्‍गम से संगम तक की पैदल यात्रा की है... उद्‍गम पेरू में है और संगम ब्राजील में... पूरे रास्ते में अत्यधिक घना जंगल पड़ता है, जिसे अमेजन रेनफॉरेस्ट कहते हैं... यह जंगल 5000 किलोमीटर लंबाई में फैला है... इसमें कई शहर तो ऐसे हैं, जहाँ हवाई पट्टी है, लेकिन वे सड़क से नहीं जुड़े हैं... और कम से कम 50 साल में जुड़ेंगे भी नहीं... इनके अलावा हजारों छोटे-बड़े गाँव भी हैं, जिनमें अनगिनत जनजातियाँ निवास करती हैं... ये जनजातियाँ आज भी आदिम जीवन जी रही हैं और पूरी तरह जंगल पर आश्रित हैं और लाखों लोग तो ऐसे हैं, जो कभी अपने गाँव से बाहर ही नहीं निकले... लेखक ब्रिटिश मूल का है अर्थात गोरा है... लेखक इस यात्रा में अनगिनत गाँवों से होकर गुजरा... ज्यादातर गाँववालों का व्यवहार उसके प्रति आक्रामक था...  लेकिन एक चीज ने मेरा ध्यान आकर्षित किया... वो यह कि लगभग सभी जनजातीय लोग गोरी चमड़ी वालों को मुँहनोचवा और सिरकाटवा कहते थे... बहुत सारे लोगों ने लेखक को भी मुँहनोचवा माना और हमले तक किए... बहुत सारे गाँववालों ने स्पष्ट घोषणा

यदि पंजाब की राजधानी जालंधर होती...??

1947 में जब भारत का बँटवारा हुआ, तो पंजाब के भी दो हिस्से हुए... एक हिस्सा पाकिस्तान में चला गया और एक हिस्सा भारत में आ गया... चूँकि पूरे पंजाब की राजधानी लाहौर थी, तो लाहौर के पाकिस्तान में चले जाने के कारण भारतीय पंजाब राजधानी-रहित हो गया... उसी समय पंजाब के लिए नई राजधानी की आवश्यकता पड़ी और चंडीगढ़ को बसाने का विचार आया... जब तक चंडीगढ़ का निर्माण हुआ, तब तक पंजाब की राजधानी शिमला रही... लेकिन बात इतनी ही नहीं है... इसी क्षेत्र में कुछ रियासतें ऐसी थीं, जो बँटवारे के समय अंग्रेजों के अधीन नहीं थीं... इनमें पटियाला, जींद, कपूरथला, नाभा, फरीदकोट, मलेरकोटला, कलसिया, नालागढ़ और बहावलपुर की रियासतें थीं... बहावलपुर का विलय पाकिस्तान में हो गया और बाकी सभी रियासतें भारत में शामिल हो गईं... ये रियासतें राजनैतिक रूप से पंजाब से अलग थीं... तो बँटवारे के बाद जो रियासतें भारत में शामिल हुईं, उन्हें पेप्सू का नाम दिया गया... PEPSU - Patiala and East Punjab States Union... 1956 तक पेप्सू भारत का एक राज्य था... Source Link पेप्सू के अलावा बाकी पंजाब अर्थात पेप्सू के बाहर का वर्तमान हरियाणा और पंजाब

केदारकंठा ट्रैक पर 8 साल के बच्चे को AMS हो गया...

अभी जब हम केदारकंठा गए, तो हमारे ग्रुप में सबसे छोटा सदस्य था अभिराज... उम्र 8 साल... अपने पापा के साथ आया था... हमने 10 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए ट्रैक पर जाना मना कर रखा था, लेकिन इन दोनों की इच्छा को देखते हुए सहमति दे दी... चूँकि बच्चों की इम्यूनिटी बड़ों से ज्यादा होती है, इसलिए मुझे बच्चे को AMS वगैरा होने का कोई डर नहीं था... 10 साल से कम उम्र के बच्चों को न ले जाने का सबसे बड़ा कारण था ठंड और बर्फ... बच्चे मैच्योर नहीं होते, इसलिए हो सकता है कि छोटे बच्चे ठंड न सहन कर पाएँ... या पैदल न चल पाएँ... ऐसे में इन्हें गोद में उठाकर या कंधे पर बैठाकर भी नहीं चल सकते... कुल मिलाकर इन बातों का प्रभाव पूरे ग्रुप पर पड़ता है...  लेकिन अभिराज ने मेरी उम्मीदों से ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया... पूरे ग्रुप को इस बच्चे ने मोटीवेट किया... मैं इसकी वीडियो नहीं बना पाया, क्योंकि पूरे ट्रैक में यह मुझसे बहुत आगे रहा... इसने न कभी खाने-पीने में नखरे दिखाए और न ही चलने में नखरे दिखाए... पहले दिन हम सांकरी से चलकर 2800 मीटर की ऊँचाई पर जूड़ा लेक पर रुके... दूसरे दिन 3100 मीटर पर बेसकैंप पर रुके... बे

केदारकंठा ट्रैक भाग-3 (केदारकंठा चोटी तक)

केदारकंठा ट्रैक भाग-1 केदारकंठा ट्रैक भाग-2 सुबह 6 बजे ही उठ गए थे, क्योंकि आज हमें बहुत ज्यादा चलना था। आज हम 2800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित जूड़ा लेक पर थे और पहले 3800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित केदारकंठा चोटी पर जाना था और उसके बाद सांकरी भी लौटना था। जूड़ा लेक से चोटी तक पहुँचने में हमें कम से कम 5 घंटे लगने थे और चोटी से नीचे सांकरी तक उतरने में 4 घंटे लगने थे। इस प्रकार आज हमें कम से कम 9 घंटे तक ट्रैक करना था। चाय बनाने के बाद खिचड़ी बनाई। निकलते-निकलते 9 बज गए। थोड़ा लेट जरूर हो गए। सारा सामान आज यहीं टैंटों में छोड़ दिया। अपने साथ केवल थोड़ा-सा भोजन और पानी ही रखा। बारिश होने के कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे, इसलिए रेनकोट भी यहीं छोड़ दिए। कई गर्म और भारी-भरकम कपड़े भी छोड़ दिए और टैंट लगा रहने दिया। कोई चोरी-चकारी नहीं होती है। लेकिन चोरी का एक उदाहरण दूँगा। यह चोरी हमने की। हुआ ये कि कल जब हम जूड़ा लेक पर आए थे, तो एक लोकल ढाबे वाले ने अपना टैंट लगा रखा था। उसका ढाबा अभी तक तैयार नहीं हुआ था, इसलिए उसने काफी सामान अपने टैंट में रख रखा था। किसी काम से वह वापस सांकरी चला गया। वह हमारे गाइड़ अवतार

केदारकंठा ट्रैक-2 (सांकरी से जूड़ा का तालाब)

केदारकंठा ट्रैक भाग-1 सुबह सवेरे अवतार भाई उपस्थित थे। हमें इस ट्रैक के लिए एक पॉर्टर की आवश्यकता थी, तो होटल वाले ने आज सुबह अवतार भाई को बुला लिया। वे सौड़ गाँव के रहने वाले हैं, जो सांकरी से एकदम लगा हुआ है।  “कितने पैसे लोगे?” “आप कितने लोग हो?” “तीन।” “केदारकंठा ट्रैक करना है ना आपको?” “हाँ।” “6000 रुपये पर पर्सन लगेंगे।” “अरे, तुम्हें होटल वाले ने बताया नहीं क्या? हमें पूरी बुकिंग नहीं करनी है। हमें केवल एक पॉर्टर चाहिए। दो दिनों के लिए।” “आप दो दिनों में ट्रैक करोगे? यह दो दिन का ट्रैक नहीं है।” “देखो अवतार भाई, हमें दो दिनों के लिए एक पॉर्टर चाहिए। हमने होटल वाले से पॉर्टर की बात की थी।” “नहीं, पॉर्टर तो मिलने मुश्किल हैं। नेपाली लोग लॉकडाउन के कारण आए नहीं हैं।” “फिर तो तुम रहने दो। हम मार्किट में जा रहे हैं। पॉर्टर आराम से मिल जाएगा।” “अच्छा, ठीक है। कितना सामान है?” “तुम्हें केवल राशन लेकर चलना है। कैंपिंग का सारा सामान हमारे पास है और हम लेकर चलेंगे।” “दो दिनों का राशन भी बहुत हो जाएगा। फिर बर्तन-बुर्तन भी होंगे। दो पॉर्टर लगेंगे।” “कितना राशन लग जाएगा? आधा किलो चावल, आधा कि

केदारकंठा ट्रैक-1 (विकासनगर से सांकरी)

लॉकडाउन के कारण कई महीनों से घर में ही पड़े हुए थे और पहाड़ों में ट्रैकिंग तो छोड़िए, घर के आसपास पैदल चलना तक मुश्किल हो गया था। फिर सितंबर आते-आते जब माहौल सामान्य हुआ, तो सबसे पहले केदारकंठा ट्रैक ही दिमाग में आया। इसका कारण था हमारा वहम। हमें लगने लगा था कि पैरों में जंग लग गई है, इसलिए छोटे ट्रैक से ही अपनी जंग उतारनी चाहिए। उधर दीप्ति लगातार मेरे 80 किलो वजन को गूगल कर-करके देखती, तो उसे बॉडी-मास इंडेक्स ‘ओवरवेट’ बताता।  खैर, हिमाचल से और उत्तराखंड के भी कई इलाकों से खबरें आ रही थीं कि स्थानीय लोग टूरिस्टों को आने नहीं दे रहे। भले ही राज्य सरकारों ने सबकुछ खोल दिया हो, लेकिन स्थानीय लोगों को लग रहा था कि टूरिस्ट लोग अपने-अपने बैगों में कोरोना लेकर आ जाएँगे। जबकि वही स्थानीय लोग दिल्ली, देहरादून और चंडीगढ़ की मंडियों में सेब लेकर रोज आना-जाना कर रहे थे और छोटे-मोटे कामों के लिए लगातार इन शहरों में जा रहे थे। लेकिन हमारे इन सीधे-सादे पहाड़ियों को आज तक भी यही लग रहा है कि टूरिस्ट लोग अपने बैगों में कोरोना भरकर लाएँगे और उनके गाँव में फैला देंगे। तो सबसे बड़ी समस्या यही थी कि सांकरी के नि