इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । आज ऐसी जगह पर चलते हैं जहाँ जाने का साहस कम ही लोग जुटा पाते हैं। क्योंकि इसके लिए दमखम व प्रकृति से लड़ने की ताकत की जरूरत होती है। यह जगह मैक्लोडगंज से मात्र नौ किलोमीटर दूर है लेकिन यहाँ जाने का इरादा करने वाले आधे लोग तो बीच रास्ते से ही वापस लौट आते हैं। परन्तु चार-पांच घण्टे की तन-मन को तोड़ देने वाली चढ़ाई के बाद कुदरत का जो रूप सामने आता है, उसे हम शब्दों में नहीं लिख सकते। ... अपनी इस दो दिवसीय यात्रा के लिए हमने योजना बनाई थी कि पहले दिन तो मैक्लोडगंज में ही घूमेंगे, दूसरे दिन कहीं आस-पास निकल जायेंगे। पहले दिन की योजना तो बारिश में धुल गयी। जब अगले दिन सोकर उठे तो देखा कि मौसम बिलकुल साफ़ था। हालाँकि जगह-जगह रुई वाले सफ़ेद बादल भी घूम रहे थे। सफ़ेद बादलों में पानी नहीं होता इसलिए आज पूरे दिन बारिश ना होने की उम्मीद थी।
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग