इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । बरला इंटर कॉलेज खेतों के बीच लम्बा चौडा बना हुआ कॉलेज है। इसलिए एक तो ठंडी हवा चल रही थी, दूसरे पंखे भी चल रहे थे। नीचे दरी बिछी हुई थी। एक थके हुए भोले को रात को सोने के लिए इससे बेहतर और क्या चाहिए? इतनी धाकड़ नींद आई कि कब सुबह के सात बज गए पता ही नहीं चला। उठे तो देखा कि बरामदा अब बिलकुल खाली है, सभी भोले जा चुके हैं। ... हालाँकि कॉलेज में चहल-पहल थी। सुबह का नाश्ता चल रहा था। हमने नहा-नूह कर चाय पी। हम चूंकि काफी देर से उठे थे तो अब जल्दी से जल्दी निकल लेने में ही भलाई थी। लेकिन मेरे लिए अब चलना भी मुश्किल हो रहा था। कल जो हम अपनी औकात से ज्यादा तेज चले थे तो इसका नुकसान अब होना था। अब तो नोर्मल स्पीड भी नहीं बन पा रही थी। इंजन, पिस्टन सब ढीले पड़े थे। पहियों में पंचर हो चुका था। ऑयल टैंक भी खाली हो गया था। अब तो बस चम्मक-चम्मक ही चल रहे थे।
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग