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Showing posts from May, 2010

रेल एडवेंचर- रेवाडी से अलवर

आज मैं आपके सामने एक सनसनीखेज खुलासा करने जा रहा हूं। आपको ये तो पता है कि इस जाट को रेल यात्रा करना पसन्द है लेकिन इस हद तक पसन्द है ये अन्दाजा नहीं होगा। अपन को एक बीमारी है कि कोई स्टेशन चुनता हूं और वहां से जाने वाली किसी सुबह वाली ट्रेन में बैठ जाता हूं और बैठा रहता हूं, बैठा रहता हूं। अगर ट्रेन लम्बी दूरी की हो तो शाम भी हो जाती है। रास्ते में ट्रेन सभी स्टेशनों पर रुकती है, सभी के नाम और समुद्र तल से ऊंचाई लिख लेता हूं। अब तो फोटो भी खींच लेता हूं। और हां, हर बार मैं नये रूट पर जाता हूं। अब तक मेरे पास 1010 स्टेशन नोट हैं। इनमें से 567 स्टेशनों की ऊंचाई भी नोट है। इन 567 में सबसे ऊंचाई वाला स्टेशन शिमला (2075 मीटर) है और सबसे कम ऊंचाई वाला स्टेशन पिताम्बरपुर (105.6 मीटर) है।

सहस्त्रधारा - द्रोणाचार्य की गुफा

देहरादून से 11-12 किलोमीटर दूर है सहस्त्रधारा। मैं अप्रैल में जब यमुनोत्री गया था तो समय मिलते ही सहस्त्रधारा भी चला गया। यह एक पिकनिक स्पॉट है लेकिन यहां का मुख्य आकर्षण वे गुफाएं हैं जिनमें लगातार पानी टपकता रहता है। यह पानी गन्धक युक्त होता है। नीचे पूरी चित्रावली दी गयी है सहस्त्रधारा में घूमने के लिये। तो शेष जानकारी चित्र देंगे: नदी का पानी रोककर तालाब बनाये गये हैं जिनमें लोग मस्ती करते हैं।

तैयार है यमुनोत्री आपके लिए

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । अब जबकि चारधाम यात्रा शुरू हो चुकी है, शुरूआत यमुनोत्री से की जाती है। ज्यादातर लोग टूर ऑपरेटर से ही बुकिंग कराते हैं। टूर ऑपरेटर भारी भरकम राशि लेते हैं। मुझ जैसों के लिये यह राशि देना बस से बाहर की बात है। खैर, यात्रा हरिद्वार-ऋषिकेश से शुरू होती है। नरेन्द्रनगर, चम्बा, टिहरी होते हुए पहुंचते हैं धरासू बैण्ड। धरासू से एक रास्ता बडकोट जाता है दूसरा उत्तरकाशी या यूं कहिये कि एक रास्ता यमुनोत्री जाता है दूसरा गंगोत्री। धरासू से यमुनोत्री जाने वाला रास्ता ऊबड-खाबड है। इस पर काम भी चल रहा है। जैसे-तैसे जानकीचट्टी पहुंचते हैं। जानकीचट्टी यमुनोत्री का बेस-कैम्प है। यहां से यमुनोत्री के लिये पैदल चढाई शुरू होती है। यहां से यमुनोत्री की दूरी पांच किलोमीटर है। रास्ता ठीक-ठाक है। अब चित्र देखिये:

यमुनोत्री में ट्रेकिंग

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । अक्षय तृतीया जा चुकी है। उत्तराखण्ड में चार धाम यात्रा भी शुरू हो चुकी है। मुसाफिरों और श्रद्धालुओं को घूमने के लिये यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसी जगहों के रास्ते खुल गये हैं। इन जगहों पर अब लोग-बाग आने-जाने शुरू हो गये हैं। जाहिर सी बात है कि सुविधायें भी मिलने लगी हैं। पिछले महीने यानी चारधाम यात्रा शुरू होने से एक महीने पहले मैं अकेला यमुनोत्री के लिये चला था। सही-सलामत पहुंच भी गया। लेकिन वहां सब-कुछ सुनसान पडा था। ऐसा यमुनोत्री आपने कभी नहीं देखा होगा। वहां की काली कमली धर्मशाला प्रसिद्ध है। लेकिन वो भी बन्द थी, क्योंकि कोई नहीं जाता वहां कपाट बन्द रहने के दिनों में। उस रात मैं चौकीदार के यहां ठहरा था। वो सरकारी चौकीदार था, और बारहों मास यही रहता है। उसका परिवार नीचे बडकोट में रहता है। उन दिनों उसके साथ उसका लडका और एक नेपाली मजदूर रह रहे थे। मेरी इच्छा अगले दिन यमुना के उदगम स्थल सप्तऋषि कुण्ड तक जाने की थी। लेकिन बारिश ने सारे करे-कराये पर पानी फेर दिया। बारिश बन्द होने पर हम चारों मन बहलाने के

कभी ग्लेशियर देखा है? आज देखिये

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक कीजिये । अभी तक आपने पढा कि मैं पिछले महीने अकेला ही यमुनोत्री पहुंच गया। अभी यात्रा सीजन शुरू भी नहीं हुआ था। यमुनोत्री में उस शाम को केवल मैं ही अकेला पर्यटक था, समुद्र तल से 3200 मीटर से भी ऊपर। मेरे अलावा वहां कुछ मरम्मत का काम करने वाले मजदूर, एक चौकीदार और एक महाराज जी थे, महाराज जी के साथ दो-तीन चेले-चपाटे भी थे। मैने रात में ठहरने के लिये चौकीदार के यहां जुगाड कर लिया। चौकीदार के साथ दो जने और भी रहते थे, एक उसका लडका और एक नेपाली मजदूर। दो कमरे थे, एक में चूल्हा-चौकी और दूसरे में बाकी सामान। बातों-बातों में मैने उनके समक्ष सप्तऋषि कुण्ड जाने की इच्छा जताई। उसने बताया कि वहां जाने का रास्ता बेहद दुर्गम है, दूरी चौदह किलोमीटर है। बिना गाइड के बिल्कुल भी मत जाना, इस समय कोई गाइड भी नहीं मिलेगा। मैने पूछा कि क्या आप वहां तक कभी गये हो? उसने बताया कि हां, मैं तो कई बार जा चुका हूं।

जानकीचट्टी से यमुनोत्री

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । जानकीचट्टी से मैने दोपहर दो बजे के करीब चढाई शुरू कर दी। तारीख थी बीस अप्रैल दो हजार दस। मैं थोडी देर पहले ही आठ किलोमीटर पैदल चलकर हनुमानचट्टी से आया था। थक भी गया था। फिर समुद्र तल से लगभग 2500 मीटर की ऊंचाई पर हवा की कमी भी महसूस होने लगती है। हल्के-हल्के चक्कर भी आ रहे थे। यहां से मेरे साथ एक परिवार और भी चल रहा था। वे लोग भरतपुर से आये थे। हरिद्वार में कुम्भ स्नान करने आये थे। समय बच गया तो ड्राइवर से कहा कि कहीं भी घुमा लाओ। ड्राइवर यमुनोत्री ले आया। ड्राइवर समेत पांच जने थे। ड्राइवर तो तेज-तेज चल रहा था लेकिन वे चारों बेहद धीरे-धीरे। दो-चार कदम चलते और सिर पकडकर बैठ जाते। उनका इरादा था कि यमुनोत्री घूम-घामकर आज ही वापस आयेंगे और कल गंगोत्री जायेंगे। उधर मेरा इरादा था कि आज रात को ऊपर यमुनोत्री में ही रुकना है। इसलिये मुझे भी तेज चलने में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

हनुमानचट्टी से जानकीचट्टी

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 20 अप्रैल, 2010। सुबह के साढे नौ बजे मैं उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री मार्ग पर स्थित हनुमानचट्टी गांव में था। यहां से आठ किलोमीटर आगे जानकीचट्टी है और चौदह किलोमीटर आगे यमुनोत्री। जानकीचट्टी तक मोटर मार्ग है और जीपें, बसें भी चलती हैं। बडकोट से जानकीचट्टी की पहली बस नौ बजे चलती है और वो दो घण्टे बाद ग्यारह बजे हनुमानचट्टी पहुंचती है। अभी साढे नौ ही बजे थे। मुझे पता चला कि जानकीचट्टी जाने के लिये केवल वही बस उपलब्ध है। अब मेरे सामने दो विकल्प थे – या तो डेढ घण्टे तक हनुमानचट्टी में ही बैठा रहूं या पैदल निकल पडूं। आखिर आठ किलोमीटर की ही तो बात है। दो घण्टे में नाप दूंगा। और एक कप चाय पीकर, एक कटोरा मैगी खाकर मैं हनुमानचट्टी से जानकीचट्टी तक पैदल ही निकल पडा।

देहरादून से हनुमानचट्टी

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । अभी तक आपने पढा कि मैं केदारनाथ के लिये चला था। रास्ते में बुद्धि फिर गयी और मैं यमुनोत्री जाने लगा। देहरादून से बडकोट जाने वाली आखिरी बस निकल गयी थी। अब मैने प्रेस की गाडी से जाने का इरादा बनाया। यह पटेल नगर से रात को बारह बजे चलती है। इसमें वैसे तो अखबार के बण्डल लदे होते हैं। फिर भी ड्राइवर सवारियां बैठा लेता है। चूंकि रात का सफर था, यह सोचकर मैं देहरादून रेलवे स्टेशन पर खाली पडी बेंच पर ही सो गया। शाम को सात बजे सोया था, आंख खुली साढे दस बजे। वो भी पता नहीं कैसे खुल गयी। मन्द मन्द हवा चल रही थी, मुझे कुछ थकान भी थी और सबसे बडी बात कि मच्छर नहीं थे। हां, याद आया, सफाई वाले ने उठाया था। खाज होती है ना कुछ लोगों को। भई, तुझे झाडू मारनी थी, चुपचाप बेंच के नीचे मार लेता, मैने तो वहां जूते भी नहीं निकाल रखे हैं। औकात दिखा रहा है कि मैं भी कुछ हूं। एक रेलवे पुलिस वाले भी ऐसे ही होते हैं।

यमुनोत्री यात्रा

अप्रैल 2010 की 18 तारीख को रात को दस बजे से अगले दिन छह बजे तक मेरी नाइट शिफ्ट की ड्यूटी थी। इस नाइट का मतलब था कि 19 को फ्री, 20 का मेरा साप्ताहिक अवकाश था और 21 तथा 22 की मैने ले ली छुट्टी; देखा जाये तो कितने दिन हो गये? चार दिन। ये चार दिन घुमक्कडी में बिताने थे। हमेशा की तरह वही दिक्कत, कहां जाऊं, किसे ले जाऊ? कोई भी मित्र तैयार नहीं हुआ। अब अकेले ही जाना था। कहां? पता नहीं। खोपोली वाले नीरज गोस्वामी जी को फोन मिलाया। वैसे तो वे हमेशा और सभी से कहते हैं कि खोपोली आओ, लेकिन आज उन्होनें सिरे से पत्ता साफ कर दिया। बोले कि यहां मत आओ, बहुत गर्मी पड रही है। मैने कहा कि साहब, गरमी-सरदी देखने लगे तो हो ली घुमक्कडी। बोले कि बरसात के मौसम में आ जाओ या फिर बरसात के बाद। ठीक है जी, बरसात के बाद आ जायेंगे।