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Showing posts from August, 2010

शेषनाग झील

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । अमरनाथ यात्रा में शेषनाग झील का बहुत महत्त्व है। यह पहलगाम से लगभग 32 किलोमीटर दूर है, और चन्दनवाडी से लगभग 16 किलोमीटर। तो इस प्रकार सोलह किलोमीटर की पैदल यात्रा करके इस झील तक पहुंचा जा सकता है। यह झील सर्दियों में पूरी तरह जम जाती है। यात्रा आते-आते पिघलती है। कभी-कभी तो यात्रा के सीजन में भी नहीं पिघलती। इसके चारों ओर चौदह-पन्द्रह हजार फीट ऊंचे पर्वत हैं। कहते हैं कि जब शिवजी माता पार्वती को अमरकथा सुनाने अमरनाथ ले जा रहे थे, तो उनका इरादा था कि इस कथा को कोई ना सुने। अगर कोई दूसरा इसे सुन लेगा, तो वो भी अमर हो जायेगा और सृष्टि का मूल सिद्धान्त गडबड हो जायेगा। सभी इसे सुनकर अमर होने लगेंगे। इसी सिलसिले में उन्होनें अपने असंख्य सांपों-नागों को अनन्तनाग में, बैल नन्दी को पहलगाम में, चन्द्रमा को चन्दनवाडी में छोड दिया था।

अमरनाथ यात्रा- पिस्सू घाटी से शेषनाग

इस यात्रा-वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । अमरनाथ यात्रा की पैदल चढाई चन्दनवाडी से शुरू होती है। चन्दनवाडी पहलगाम से सोलह किलोमीटर आगे है। चन्दनवाडी से कठिन चढाई चढकर यात्री पिस्सू टॉप पहुंचते हैं। पिस्सू टॉप तक का रास्ता काफी मुश्किल है, आगे का रास्ता कुछ कम मुश्किल है। कुछ दूर तक तो उतराई ही है। अधिकतर यात्री चन्दनवाडी से यहां तक खच्चर से आते हैं। आगे की यात्रा पैदल करते हैं। लेकिन कुछ यात्री ऐसे भी होते हैं, जो पिस्सू टॉप तक पैदल आते हैं और इस मुश्किल चढाई में उनका मामला गडबड हो जाता है। आगे चलने लायक नहीं रहते। इसलिये उन्हे आगे के अपेक्षाकृत सरल रास्ते में खच्चर करने पडते हैं। हमारे दल में मनदीप भी ऐसा ही था। पिस्सू टॉप तक पहुंचने में ही पैर जवाब दे गये और आगे शेषनाग के लिये खच्चर करना पडा।

पहलगाम से पिस्सू घाटी

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । चौदह जुलाई 2010 की सुबह हम पहलगाम से निकल पडे। ड्राइवर से बोल दिया कि तू यहां से बालटाल चला जा और हम परसों तुझे बालटाल में ही मिलेंगे। चाहे तो तू भी अमरनाथ दर्शन कर लेना। आज शाम तक बालटाल पहुंच जायेगा, कल चढाई करके परसों वापस आ जाना। ड्राइवर ने कहा कि हां, देखूंगा। छह-साढे छह के करीब हमने पहलगाम से एक गाडी ली और चन्दनबाडी पहुंच गये। चन्दनबाडी (या चन्दनवाडी) के रास्ते में एक जगह पडती है – बेताब घाटी। इसी घाटी में बेताब फिल्म की शूटिंग हुई थी। लगभग पूरी फिल्म यही पर शूट की गयी थी। ऊपर सडक से देखने पर बेताब घाटी बडी मस्त लग रही थी।

पहलगाम- अमरनाथ यात्रा का आधार स्थल

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । बारह जुलाई की शाम को पांच बजे दिल्ली से चले थे और अगले दिन शाम को पांच बजे पहलगाम पहुंचे। चौबीस घण्टे के लगातार सफर के बाद। इसमें भी हैरत की बात ये है कि ड्राइवर रवि ही पूरे रास्ते भर गाडी चलाता रहा। ना तो रात को सोया ना ही आज सुबह से अब तक पलक झपकी। अनन्तनाग से शुरू हो जाता है सुरक्षा बलों और सेना का पहरा। सडक पर कर्फ्यू सा लगा हुआ था। दुकानें बन्द थीं। कुछ लोग इधर-उधर घूम रहे थे। लगभग हर बन्द दुकान के सामने जवान तैनात था। पहलगाम तक यही सिलसिला रहा। हां, लिद्दर नदी भी अनन्तनाग से ही साथ दे रही थी। एक अकेली लिद्दर ही है, जो पहलगाम में जान डाल देती है।

अमरनाथ यात्रा

अमरनाथ यात्रा वृत्तान्त शुरू करने से पहले कुछ आवश्यक जानकारी जरूरी है। मित्रों का आग्रह था कि मैं ये जानकारियां यहां जोड दूं। रास्ता वैसे तो आप आगे पढेंगे तो सारी जानकारी विस्तार से मिलती जायेगी, लेकिन फिर भी संक्षिप्त में: यात्रा पहलगाम से शुरू होती है। पहलगाम जम्मू और श्रीनगर से सडक मार्ग से अच्छी तरह जुडा है। पहलगाम (2100) से चन्दनवाडी (2800)= 16 किलोमीटर सडक मार्ग चन्दनवाडी (2800) से शेषनाग झील (3700)=16 किलोमीटर पैदल शेषनाग झील (3700) से महागुनस दर्रा (4200)=4 किलोमीटर पैदल महागुनस दर्रे (4200) से पंचतरणी (3600)=6 किलोमीटर पैदल पंचतरणी (3600) से अमरनाथ गुफा (3900)=6 किलोमीटर पैदल अमरनाथ गुफा (3900) से बालटाल (2800)=16 किलोमीटर पैदल

खीरगंगा और मणिकर्ण से वापसी

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । चलिये आज खीरगंगा और मणिकर्ण से वापस चलते हैं। इसकी वजह से अमरनाथ यात्रा के प्रकाशन में विलम्ब हो रहा है। फिर अमरनाथ यात्रा का धारावाहिक छपेगा। मैं जून 2010 के महीने में अकेला ही मणिकर्ण गया था। लगे हाथों खीरगंगा भी चला गया। जब खीरगंगा से वापस चलने लगा तो नीचे मणिकर्ण से एक दल और आ गया। कुल छह जने थे। पंजाब के थे। मैने उनसे कहा कि इस गरम कुण्ड में थोडी देर नहा लो, दस किलोमीटर पैदल सफर की थकान उतर जायेगी। जल्दी करना, फिर मैं भी तुम्हारे साथ ही वापस चलूंगा। भले मानस थे, मेरी बात मान ली। यह दल पुलगा तक मोटरसाइकिल से आया था। शेष दस किलोमीटर पैदल का रास्ता है। इनकी मोटरसाइकिलें पुलगा में ही सडक किनारे खडी थीं, लावारिसों की तरह। एक यह भी कारण था कि ये सभी फटाफट नहाये और फटाफट वापस चल पडे।