Skip to main content

नीलकंठ महादेव मन्दिर- राजस्थान का खजुराहो

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
26 नवम्बर 2012 की शाम के सवा चार बजे थे, जब हमने भानगढ से प्रस्थान किया। लक्ष्य था नीलकण्ठ महादेव। साढे पांच बजे हम नीलकण्ठ महादेव पर थे।
पता नहीं किस वर्ष में राजा अजयपाल ने नीलकण्ठ महादेव की स्थापना की। यह जगह मामूली सी दुर्गम है। जब भानगढ से अलवर की तरफ चलते हैं तो रास्ते में एक कस्बा आता है- टहला। टहला से एक सडक राजगढ भी जाती है।
टहला में प्रवेश करने से एक किलोमीटर पहले एक पतली सी सडक नीलकण्ठ महादेव के लिये मुडती है। यहां से मन्दिर करीब दस किलोमीटर दूर है। धीरे धीरे सडक पहाडों से टक्कर लेने लगती है। हालांकि इस कार्य में सडक की बुरी अवस्था हो गई है लेकिन यह अपने मकसद में कामयाब भी हो गई है। कारें इस सडक पर नहीं चल सकतीं, जीपें और मोटरसाइकिलें कूद-कूदकर निकल जाती हैं।
आठ दिन की इस यात्रा में यह जगह मुझे सर्वाधिक पसन्द आई। साढे पांच बजे जब हम यहां पहुंचे तो एक छोटे से गांव से निकलते हुए मन्दिर तक पहुंचे। टहला से चलने के बाद पहाड पर चढकर एक छोटे से दर्रे से निकलकर एक घाटी में प्रवेश करते हैं। यह घाटी चारों तरफ से पहाडों से घिरी है, साथ ही घने जंगलों से भी।
अन्धेरा होने लगा था। एक पुलिस वाले ने मुझे फोटो खींचते देखकर पर्ची कटवाने की सलाह दी, जिसे मैंने तुरन्त मान लिया। पच्चीस रुपये की पर्ची कटी।
कल विधान की शादी की सालगिरह है। चलते समय गृह मन्त्रालय का सख्त आदेश था कि सालगिरह धूम-धाम से मनानी है। उधर भानगढ से यहां तक के घण्टे भर के सफर में मैंने विधान के मन में घुस-घुसकर यह निष्कर्ष लगाया कि महाराज गृह मन्त्रालय की बात टाल सकते हैं। इसी का नतीजा हुआ कि मैं नीलकण्ठ पहुंचते ही जिद कर बैठा कि आज यहीं रुकेंगे।
एक स्थानीय लडके से पता चला कि पूरे गांव में रुकने का वैसे तो कोई आधिकारिक ठिकाना नहीं है लेकिन किसी भी घर में जाकर ‘भिक्षां देहि’ जैसी भावना प्रदर्शित करेंगे तो कोई मना नहीं करेगा। यह सुनते ही मैंने तुरन्त उसी लडके के सामने ‘झोली’ फैला दी जिसे उसने अविलम्ब सहर्ष स्वीकार कर लिया। विधान ने काफी कुरेदा ताकि लडका अगर मना ना भी करे तो मना करने की मनोस्थिति में आ जाये लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
इस गांव का नाम भी नीलकण्ठ महादेव ही है। लेकिन यह बडी मुसीबतों से गुजर रहा है। यह सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के क्षेत्र में आता है। वन विभाग पूरी तरह कुण्डली मारे बैठा है इस गांव को विस्थापित करने के लिये लेकिन नीलकण्ठ बाबा के प्रताप से यह बचा हुआ है, बल्कि आगे भी बचा रहेगा। बाबा का प्रताप इसलिये कि बाबाजी पुरातत्व के अन्तर्गत हैं। अगर गांव यहां से विस्थापित हो जाता है तो पुरातत्व वालों को भी यह बेशकीमती धरोहर छोडनी पडेगी। पुरातत्व की ही वजह से यहां पुलिस भी रहती है। उनका कार्यालय नीलकण्ठ मन्दिर के अहाते में ही है। हालांकि अडोस पडोस के कई गांव जंगल में होने की वजह से विस्थापित हो चुके हैं।
जंगलात की वजह से इतनी महत्वपूर्ण जगह तक सडक नहीं बन पाई। सडक तो है लेकिन ना होने के बराबर ही है। गांव में बिजली नहीं है, हालांकि घरों में सोलर पैनल लगे हैं जिनसे ये टीवी, फ्रिज आदि भी चला लेते हैं। मोबाइल टावर दूर नीचे घाटी से बाहर टहला में है, जिससे वोडाफोन के अलावा कोई फोन काम नहीं करता। विधान ने इसी तरह एक वोडाफोन से ‘होम मिनिस्ट्री’ को सूचित किया कि आज आना असम्भव है।
क्या आव-भगत हुई हमारी उनके घर पर! सारा कुनबा हमें घेरकर बैठ गया और हम तक अधिक से अधिक जानकारी देने के प्रयत्न में जुट गया। बाद में लडकों की नौकरी लगवाने की भी बात सामने आई जिसे हमने बडी कुशलता से रफा-दफा कर दिया।
अगले दिन पता चला कि हमारे सामने पुरातत्व का कितना महत्वपूर्ण खजाना है। बताते हैं कि इस घाटी में कभी 360 मन्दिर हुआ करते थे। अब एक ही मन्दिर बचा हुआ है। बाकी सभी को मुसलमानों ने मटियामेट कर दिया। आखिरी को मटियामेट करते समय चमत्कार हुआ और यह बच गया। बचा हुआ ही नीलकण्ठ महादेव मन्दिर है। यहां सावन में श्रद्धालु हरिद्वार आदि स्थानों से गंगाजल लाकर चढाते हैं।
ध्वस्त हुए मन्दिरों को देवरी कहते हैं। इनके ध्वंसावशेष आज भी काफी संख्या में बचे हैं। इन्हें देखने से पता चलता है कि ये कितने बडे बडे मन्दिर हुआ करते थे। सभी मन्दिरों पर छैनी हथौडे का कमाल देखते ही बनता है। सभी देवरियों के अलग-अलग नाम हैं जैसे कि हनुमान जी की देवरी, गणेश जी की देवरी आदि। कुछ बडे ही विचित्र विचित्र नाम भी हैं, मैं भूल गया हूं। खेतों के बीच झाडियों से घिरी देवरियों तक पहुंचना बडा रोमांचकारी काम होता है।
कैसे हाथ चला होगा इन मन्दिरों को तोडने समय?
इस घाटी में मोर बहुतायत में है। हर खेत में, हर पेड पर, हर छत पर, हर देवरी पर... सब जगह मोर ही बैठे मिलते हैं। हालांकि आदमी से दूर रहने का प्रयत्न करते हैं।
घाटी के एक सिरे पर छोटी सी झील है। इसमें एक बांध बनाया गया है और इसकी आकृति ऐसी है कि पूरी घाटी का पानी यही आकर इकट्ठा होता रहता है।

टहला से नीलकण्ठ जाने वाली सडक

नीलकण्ठ वाली पहाडी से टहला की तरफ देखने पर

नीलकण्ठ महादेव मन्दिर

मन्दिर के अन्दर शिवलिंग

नीलकण्ठ मन्दिर

दिगम्बर जैन

सूर्योदय





बांध





नीलकण्ठ गांव


मोरों के देश में मोरपंखों की क्या कमी?
अब देखते हैं नीलकण्ठ मन्दिर और विभिन्न देवरियों पर की गई छैनी हथौडी की जादूगरी:










अब कुछ पक्षी:







एक नीलकण्ठ महादेव उत्तराखण्ड में भी है।

अगला भाग: टहला बांध और अजबगढ

जयपुर पुष्कर यात्रा
1. और ट्रेन छूट गई
2. पुष्कर
3. पुष्कर- ऊंट नृत्य और सावित्री मन्दिर
4. साम्भर झील और शाकुम्भरी माता
5. भानगढ- एक शापित स्थान
6. नीलकण्ठ महादेव मन्दिर- राजस्थान का खजुराहो
7. टहला बांध और अजबगढ
8. एक साइकिल यात्रा- जयपुर- किशनगढ- पुष्कर- साम्भर- जयपुर

Comments

  1. सुंदर चित्र, खजुराहो समानार्थी हो गया है मिथुन मूर्तियों के लिए.

    ReplyDelete
  2. नीरज जी बहुत खूबसूरत, बहुत ही गज़ब फोटो और वर्णन हैं, आपने एक नए खजुराहो के दर्शन कराये हैं, धन्यवाद, अरे भाई ये सांप पर अपना नाम क्यों लिख दिया, सांपिन नाराज़ हो जायेंगी...भारत सरकार को ये स्थान संरक्षित करना चाहिए, इसके बारे में आप से ही मालुम पड़ा, धन्यवाद पुनः, वन्देमातरम...

    ReplyDelete
  3. नीरज भाई, गजब का फोटो ! आदमियों से दूर तो रहना हर कोई चाहता है पर आप जैसे दिलचस्प आदमी से नहीं ! वैसे विधान बाबु का सालगिरह कैसा रहा ! मेरे तरफ से उनको बधाई! धन्यवाद!

    ReplyDelete
  4. नीरज तो पहचान में ही नहीं आ रहा है ...क्या हालत हो गई बेचारे की ....मुंबई में तो आते ही नहाया था---यहाँ कही नहाने की जगह भी नहीं मिली .. वैसे मोर पंख वाली तस्वीर बहुत उम्दा है .. और उस पर विधान की "कबीर के साथ की गई तुलना"---मजेदार रही ... ऐसे भिति चित्र मैने कई जगह देखे है ...खासकर पुराने मंदिरों में ..

    ReplyDelete
  5. mujhe bhi kabhi apne sath yatra karne ja avsar prdan karo.

    ReplyDelete
  6. neeraj bhai abhi 2 din pahle hi hum neelkanth mandir jane ke liye nikle thr par raste mein hi hamari tavera gadi puncture ho gayi to hum adhe raste se hi vapas aa gaye par kismat se aapne darshan kara diye

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर मंदिर है...

    पर ये बताओ सांप के उपर नीरज जाट क्यों लिख दिया

    ReplyDelete
  8. पत्थरों में इतिहास के अध्याय उकेर कर चले गये हमारे पूर्वज..

    ReplyDelete
  9. बहुत सुंदर चित्रण और विवरण

    आपकी आज्ञा हो तो कुछ फोटो राजगढ के ब्‍लॉग पर लगा लूं


    mr.rajeevjain@gmail.com

    ReplyDelete
  10. thodi si jaankari aur kuch photos yadi jain moorti ke baare me bhi de dete to aur bhi badiya ho jaata....darasal is sthan ke baare me koi nahi jaanta....isliye jigyasa hai....aapka blog lekhan aur chitra sabhi umda hai....shubhkaamnaye...!
    mujhe likhe=> manishjain31@gmail.com

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब