4 जून को दिल्ली से निकल जाने की योजना है और 27 जून को दिल्ली वापस आने की। पिछले साल साइकिल ली थी ना, बडी महंगी थी; पता नहीं था कि ऐसी साइकिलें सस्ती भी आती हैं, करण के चक्कर में ले बैठा। तभी से दिमाग में सनक थी कि इसे लद्दाख ले जाऊंगा। एक बार ऋषिकेश ले गया नीलकण्ठ तक, पता चल गया कि लद्दाख जैसी अत्यन्त ऊंची जगहों पर साइकिल चलाना आसान नहीं होगा। उसके बाद चार पांच दिनों तक राजस्थान में भी चलाई, इतना थक गया कि आगे न चलाने की प्रतिज्ञा कर ली। लेकिन जैसे ही थकान उतरी, फिर से धुन चढ गई। हिसाब लगाया। श्रीनगर से लेह के रास्ते मनाली 900 किलोमीटर है। रोज पचास किलोमीटर के औसत से भी चलाऊंगा तो अठारह दिन में मनाली पहुंचूंगा। यानी कम से कम बीस दिन की छुट्टी तो लेनी ही पडेगी। छुट्टी सीमा बीस से बढाकर सत्ताइस दिन कर दी और इसमें नुब्रा घाटी, पेंगोंग झील व चामथांग भी शामिल कर दिये। मोरीरी झील चामथांग का मुख्य आकर्षण है। लेकिन सत्ताइस दिन की छुट्टी मिलना आसान नहीं। साहब से छुट्टी के बारे में बात की, तय हुआ कि बीस ही दिन की मिल सकती है। मैंने सत्ताइस दिन हटाकर बीस दिन की लगा दी। अभी पास नहीं हुई
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग