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लद्दाख बाइक यात्रा- 3 (जम्मू से बटोट)

8 जून 2015
आज का दिन बहुत खराब बीता और बहुत अच्छा भी। पहले अच्छाई। कोठारी साहब की बाइक स्टार्ट होने में परेशानी कर रही थी और कुछ इंडीकेटर भी ठीक काम नहीं कर रहे थे। मुझे लगा बैटरी में समस्या है। इसे ठीक कराना जरूरी था क्योंकि आगे ऊंचाईयों पर ठण्ड में यह काम करना बन्द भी कर सकती है।
चलिये, आगे की कहानी शुरू से शुरू करते हैं।
छह बजे मेरी आंख खुल गई थी हालांकि अलार्म 7 बजे का लगाया था। अभी तक निशा भी सो रही थी और कोठारी साहब भी। यह बडी अच्छी बात है कि कोठारी जी भी पक्के सोतडू हैं। उनके ऐसा होने से इतना तो पक्का हो गया कि इस यात्रा में मुझे कभी कोई नहीं उठायेगा। निशा भी इसी श्रेणी की जीव है। अगर उसे न उठाया जाये तो वह दस बजे तक भी नहीं उठने वाली।
खैर, साढे सात बजे अर्णव और उसका दोस्त अजय आ गये। तब तक हम नहा चुके थे। सामान यहीं छोडा और अर्णव की कार में बैठकर जम्मू घूमने चल दिये। सबसे पहले पहुंचे पीर खोह। अर्णव के शब्दों में- ‘पीर खोह में हम जामवन्त गुफा में गये थे। यहां पर शिवलिंग एकमुखी रुद्राक्ष के रूप में है।’ पीर खोह- जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि यह एक खोह है यानी गुफा है। तवी नदी के बिल्कुल किनारे। अन्दर फोटो लेना मना है। गुफा में झुककर अन्दर जाना होता है। लेकिन इसका आवरण, रंग-पुताई और पक्का फर्श देखकर ऐसा लगता है कि कहीं यह नकली गुफा तो नहीं है। इस जामवन्त गुफा के बराबर में एक गुफा और है जिसमें देवी की प्रतिमा स्थापित है। देवी मन्दिर के बारे में अर्णव ने कहा- ‘यह असल में गुफा नहीं है लेकिन इसे गुफा जैसा बना दिया है।’ बाद में बाहर आकर जब मैंने यहां का भू-दृश्य देखा तब पता चला कि देवी मन्दिर भी वास्तव में एक गुफा है। हालांकि जामवन्त गुफा जितनी गहरी नहीं है।
यहां से निकलकर सीधे पहुंचे बाहु किले पर। किला सेना के अधीन है और आम नागरिकों को इसमें घूमने की अनुमति नहीं है लेकिन इसमें एक मन्दिर है जिसमें जम्मूवासियों की बडी श्रद्धा है। वो है बावे वाली माता। यहां भी कैमरा ले जाने की मनाही है और मन्दिर तक पहुंचने के लिये एक सुरक्षा घेरे से गुजरना पडता है। मन्दिर में अर्णव के आग्रह पर पुजारी ने इसकी पौराणिक कथा सुनाई थी जो अब मैं भूल गया हूं। उम्मीद है कि अर्णव नीचे टिप्पणी में उस कथा का सार सुनायेगा।
आखिर में गये महामाया मन्दिर। यह मन्दिर तवी के बायें किनारे पर स्थित है और यहां से नदी के उस पार पुराने जम्मू का अच्छा नजारा दिखता है। कमाल की बात यह है कि हम जम्मू के सबसे प्रसिद्ध रघुनाथ मन्दिर नहीं गये जबकि हमारा कमरा रघुनाथ मन्दिर के द्वितीय दरवाजे के बिल्कुल सामने ही था और कमरे से पूरा मन्दिर समूह दिखाई देता था। अर्णव एक धार्मिक व्यक्ति है और जितने भी मन्दिर उसने हमें दिखाये, पूरी जी-जान से दिखाये। साथ ही उसे यह भी पता था कि मेरी इन मन्दिरों और पूजा-पाठ में कोई दिलचस्पी नहीं है। लेकिन इसका एक कारण और भी था-
जम्मू केवल एक शहर या जिले का ही नाम नहीं है बल्कि एक बहुत बडे क्षेत्र का भी नाम है। यह इतना बडा क्षेत्र है कि इसमें जम्मू-कश्मीर राज्य के दस जिले आते हैं- कठुआ, साम्बा, जम्मू, रियासी, राजौरी, पुंछ, ऊधमपुर, रामबन, डोडा और किश्तवाड। जम्मू-कश्मीर राज्य में तीन क्षेत्र हैं- जम्मू क्षेत्र, कश्मीर और लद्दाख। जम्मू जहां हिन्दु बहुल है वही कश्मीर मुस्लिम बहुल और लद्दाख बौद्ध बहुल। जम्मू के लोगों का एकमत भारत के साथ रहने में है जबकि कश्मीर के कुछ लोग पाकिस्तान समर्थक हैं, कुछ अपना अलग देश चाहते हैं, कुछ भारत समर्थक हैं। पिछले दिनों जो राज्य में विधानसभा के चुनाव हुए, उनमें 25 सीटें भाजपा को मिली थीं। ये सभी भाजपा को जम्मू से मिली हैं, कश्मीर से उसे एक भी सीट नहीं मिली। जाहिर है कि ऐसा हिन्दू वोटों के कारण हुआ।
जो झगडा भारत और कश्मीर का है, वही झगडा जम्मू और कश्मीर का भी है। कश्मीरियों के साथ मैं पहले रह चुका हूं, एक जम्मूवासी के साथ बोलने-बतियाने का यह पहला मौका था। अर्णव ने बताया- अगर जम्मू-कश्मीर को सौ रुपये मिलते हैं तो उनमें से एक रुपया जम्मू को भी मिल जाता है। जम्मू उस एक रुपये में भी खुश है लेकिन कश्मीर निन्यानवें रुपये में खुश नहीं है। जम्मू में एक ही पर्यटक स्थल है- वैष्णों देवी। वैसे तो पटनी टॉप भी है लेकिन वो कश्मीर जाने वालों के लिये एक रात बिताने का स्थान है। कुछ स्थान और भी हैं लेकिन कश्मीरी सरकार भला क्यों विकास करेगी?
बाद में शाम को जब कोठारी साहब ने बटोट का एक फोटो अपनी फेसबुक वॉल पर लगाया तो कैप्शन लिखा- ये कश्मीर है। बटोट पटनी टॉप के पास है अर्थात जम्मू में। अर्णव ने देखा तो टिप्पणी की- सर जी, यह कश्मीर नहीं है, बल्कि जम्मू है। बाद में इस बारे में मेरा और कोठारी साहब का तर्क-वितर्क भी हुआ था। मैंने पूछा- आपने सब जानते हुए भी इसे कश्मीर क्यों लिखा? बोले- दोस्तों में स्टेटस बढाने के लिये। मैंने कहा- जब गलत ही लिखना था, झूठ ही लिखना था तो स्विट्जरलैण्ड लिखते।
जरा सोचिये, आपकी एक खूबसूरत चीज को कोई बाहर का आदमी आपके पडोसी- जिसके साथ आपके सम्बन्ध मधुर नहीं हैं- की चीज बताकर प्रचार करे तो आपको कैसा लगेगा? जम्मू के साथ यही हो रहा है। मैंने कई यात्रा-वृत्तान्त पढे हैं जिनमें वे लोग वैष्णों देवी या पटनी टॉप घूमकर चले आते हैं और बाद में प्रकाशित करते हैं- हमारी कश्मीर यात्रा। जम्मू तो आहत होगा ही।

वापस आकर नाश्ता करके... हां, नाश्ते से याद आया। अर्णव हमें एक दुकान में ले गया- यहां जम्मू की सर्वोत्तम पूडियां मिलती हैं। लेकिन मैंने देखा कि वे लोग भठूरे तल रहे थे। मैंने कहा- ये तो भठूरे हैं। अर्णव ने बताया- नहीं, पूडियों और भठूरों में फर्क होता है। गौरतलब है कि अर्णव को खाने-पीने की बहुत परख है। छोटी-छोटी चीजों में सूक्ष्म अन्तर महसूस कर सकता है। वह अपनी इस खासियत को लेकर एक ब्लॉग शुरू करने वाला है।
ग्यारह बजे यहां से चल दिये। सीधे पहुंचे मैकेनिक के पास। कोठारी साहब की बाइक की बैटरी देखी, यह शुष्क बैटरी थी, इसमें पानी की जरुरत नहीं होती। यह बिल्कुल ठीक थी। मैकेनिक अनुभवी था और हमारी लद्दाख की आवश्यकताओं को समझता था। दो घण्टे तक वह इसमें लगा रहा। ब्रेक ठीक किये, वायरिंग ठीक की, एयर फिल्टर टूटा था- इसे बदला, कुछ टूल भी खरीदवाये, पच्चीस बातें बताईं और जब कोठारी साहब ने ट्रायल लिया तो उनके मुंह से निकला- अरे, यह मेरी वही बाइक है?
ऊंचे दर्रों पर जब बाइक को ऑक्सीजन न मिले, तो कैसे एयर फिल्टर हटाकर बाइक को ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन दी जाती है, यह मैंने यहीं सीखा।
एक बज चुका था। गर्मी चरम पर थी। तय योजना के अनुसार अब हमें अखनूर होते हुए राजौरी तक जाना था लेकिन अब मैंने इसमें परिवर्तन किया- हम पटनी टॉप के रास्ते जायेंगे। क्योंकि राजौरी वाला रास्ता ज्यादा ऊंचाई से होकर नहीं गुजरता, इसलिये वहां पूरे रास्ते भर गर्मी ही मिलेगी। दो दिनों से हम खूब गर्मी सहन करते आ रहे हैं। अब और सहन नहीं करेंगे।
कुछ दूर तक अर्णव हमारे साथ चला, फिर विदा हो गया। तय हुआ कि हम अगस्त में फिर जम्मू आयेंगे और जम्मू के सुदूरवर्ती धार्मिक स्थानों की यात्रा करेंगे जैसे कि किश्तवाड से आगे मचैल माता और भद्रवाह के पास कैलाश।
जम्मू-ऊधमपुर सडक बेहद शानदार बनी है। पर्वतीय भूभाग होने के बावजूद भी यह चार लेन की है। हमारी मुख्य समस्या सामान बांधने की थी। हम अपना-अपना सामान ठीक से नहीं बांध पा रहे थे। ऊधमपुर में जब दोनों बाइकों से सामान गिरने की हालत में पहुंच गया, तब हम रुके और सारा सामान खोलकर पुनः बांधा। इस समय मैं बहुत ज्यादा परेशान था और चिडचिडा भी। अभी दो ही दिन हुए हैं यात्रा शुरू किये हुए, बीस दिन से ज्यादा की यात्रा अभी भी बची हुई है। सामान हमारे काबू में नहीं आ रहा है। अभी तक हम शानदार हाईवे पर चल रहे हैं, आगे खराब सडक पर भी चलेंगे। पता नहीं कैसे बीतेगी? कोठारी साहब न होते तो मैं निशा पर फट पडता।
तीन बजे ऊधमपुर पार हो गया। मैं इससे आगे के ट्रैफिक से डर रहा था। गनीमत थी कि जितना डर रहा था, उतना ट्रैफिक नहीं मिला अन्यथा ऊधमपुर से बनिहाल और उससे भी आगे तक सडक खराब भी है और जाम भी लम्बे लम्बे लगते हैं। मौसम खराब हो गया और बारिश पडने लगी। पटनी टॉप की चढाई आरम्भ हो चुकी थी, गर्मी भी गायब हो गई थी। कुद से पहले डोगरा गांव के पास बारिश से बचने और चाय पीने रुक गये। तभी कोठारी साहब ने पूछा- क्या पटनी टॉप से भी कोई सडक राजौरी जाती है? मैंने कहा- नहीं, राजौरी का आखिरी रास्ता ऊधमपुर से था। फिर बोले- अब हम राजौरी कैसे जायेंगे? मैंने कहा- नहीं जायेंगे। अब हम सीधे कश्मीर जा रहे हैं। बोले- तब तो हमारा प्लान ही चौपट हो गया। मैंने कहा- नहीं, कुछ भी चौपट नहीं हुआ है।
मैं पटनी टॉप में नहीं रुकना चाहता था। जून का महीना है, हिल स्टेशनों का पीक सीजन होता है, कमरे महंगे मिलते हैं। पटनी टॉप से इधर कुद है और उधर बटोट। वैसे तो समय था, हम रामबन तक भी जा सकते थे लेकिन रामबन उतनी ऊंचाई पर नहीं है। वहां हमें गर्मी मिलेगी। अगर रुकना है तो कुद और बटोट के बीच में ही रुकना है ताकि ठण्डे मौसम में रहें। निशा ने सुझाव दिया कि बटोट ही रुकते हैं, कल के लिये दूरी कुछ कम हो जायेगी। कुद और पटनी टॉप नॉन-स्टॉप पार हो गये।
कमरे की हमारी अधिकतम सीमा थी 500 रुपये। पटनी टॉप पर जब हम ट्रैफिक में धीरे धीरे चल रहे थे, तो एक लडका हमारे पास आया और कहने लगा- 500 रुपये में कमरा। कोठारी साहब आगे निकल चुके थे, उनका मोबाइल नम्बर अभी भी पोस्ट-पेड नहीं हुआ था। वे साथ होते तो हम यहीं पर रुक जाते। पटनी टॉप में कमरा लेते और शाम को यहीं घूमते। लेकिन हमें भी आगे बढ जाना पडा।
सडक किनारे बने एक अकेले गेस्ट हाउस के पास कोठारी साहब खडे मिले। कमरे की बात की तो एक अधेड आदमी ने पांच सौ रुपये किराया बताया। यह गेस्ट हाउस छोटा सा था, बिल्कुल एकान्त में। आसपास खेत और जंगल ही थे। लोकेशन मुझे और निशा को बहुत पसन्द आई। निशा और कोठारी साहब कमरा देखने की औपचारिकता करने चले गये। अधेड ने अपने लडके को उनके साथ भेज दिया। कमरा देखकर वापस आये तो लडका कहने लगा- इसका किराया पन्द्रह सौ रुपये है। मैंने कहा- अबे, तेरे पापा तो पांच सौ बता रहे हैं। उन बाप-बेटों की बहस भी हुई। उन्हें लडता छोडकर हम आगे बढ गये।
आखिरकार ठिकाना मिला बटोट से एक किलोमीटर पहले- होटल मोती महल। एक कमरा सात सौ का था लेकिन बडी आसानी से पांच सौ का हो गया। लेकिन इसके हमें सात सौ ही चुकाने पडे। कोठारी साहब के लिये अतिरिक्त बिस्तर लगवाना पडा। उसके दो सौ रुपये ले लिये। रात को फ्री में कैण्डल लाइट डिनर किया। बिजली चली गई थी, अपने आप ही कैण्डल लाइट डिनर हो गया।

जम्मू में यात्रा की हाईलाइट नोट करता हुआ जाटराम

होटल के कमरे से दिखता रघुनाथ मन्दिर समूह


पीर खोह... इससे आगे कैमरा ले जाना मना है।

बाहु किले के पास

महामाया मन्दिर से दिखती तवी नदी


ऊधमपुर की ओर जाती रेलवे लाइन



उस पूरी वाली दुकान में

इसे मैंने भठूरा कहा लेकिन अर्णव के अनुसार यह पूडी है।

अर्णव के साथ एक ग्रुप फोटो, सबसे पीछे खडे हैं कोठारी साहब।

जम्मू-ऊधमपुर हाईवे

बटोट के पास होटल में





1. लद्दाख बाइक यात्रा-1 (तैयारी)
2. लद्दाख बाइक यात्रा-2 (दिल्ली से जम्मू)
3. लद्दाख बाइक यात्रा-3 (जम्मू से बटोट)
4. लद्दाख बाइक यात्रा-4 (बटोट-डोडा-किश्तवाड-पारना)
5. लद्दाख बाइक यात्रा-5 (पारना-सिंथन टॉप-श्रीनगर)
6. लद्दाख बाइक यात्रा-6 (श्रीनगर-सोनमर्ग-जोजीला-द्रास)
7. लद्दाख बाइक यात्रा-7 (द्रास-कारगिल-बटालिक)
8. लद्दाख बाइक यात्रा-8 (बटालिक-खालसी)
9. लद्दाख बाइक यात्रा-9 (खालसी-हनुपट्टा-शिरशिरला)
10. लद्दाख बाइक यात्रा-10 (शिरशिरला-खालसी)
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12. लद्दाख बाइक यात्रा-12 (लेह-खारदुंगला)
13. लद्दाख बाइक यात्रा-13 (लेह-चांगला)
14. लद्दाख बाइक यात्रा-14 (चांगला-पेंगोंग)
15. लद्दाख बाइक यात्रा-15 (पेंगोंग झील- लुकुंग से मेरक)
16. लद्दाख बाइक यात्रा-16 (मेरक-चुशुल-सागा ला-लोमा)
17. लद्दाख बाइक यात्रा-17 (लोमा-हनले-लोमा-माहे)
18. लद्दाख बाइक यात्रा-18 (माहे-शो मोरीरी-शो कार)
19. लद्दाख बाइक यात्रा-19 (शो कार-डेबरिंग-पांग-सरचू-भरतपुर)
20. लद्दाख बाइक यात्रा-20 (भरतपुर-केलांग)
21. लद्दाख बाइक यात्रा-21 (केलांग-मनाली-ऊना-दिल्ली)
22. लद्दाख बाइक यात्रा का कुल खर्च




Comments

  1. यहाँ तक सब देखा भाला लग रहा है पर चरणबद्ध प्रक्रिया का हिस्सा है तो गुजरना तो पड़ेगा ही. :P
    बस आगे की उत्सुकता है.

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    1. जल्दी ही हम अनजाने लोक में प्रवेश करने वाले हैं।

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  2. badhiya! main akhnur border pe ghuma hun ek dafe, us taraf pakistan, is taraf hindustan, beech me baad, pehli baar wahin dekha tha.

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    1. भाई जी, आप तो पाकिस्तान भी गये हो... हम इस बार अखनूर नहीं जा पाये, अगली बार देखेंगे।

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  3. शानदार विवरण ! ..... मै ४ बार जम्मु गया हू .... बाहु किला आज तक नही देखा ..........

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    1. कोई बात नहीं... पांचवीं बार जाओगे, तब देख लेना।

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  4. You are an inspiration traveler for many. Keep going Brother.

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  5. वाकई अर्णव के कारण जम्मू प्रवास यादगार बन गया व पता चला कि जम्मू भी एक घुमने की जगह है। अर्णव का हर बात के बारे में विश्लेषण तार्किक था।

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  6. बहुत अच्‍छा विवरण । जम्‍मू के बारे में बहुत सी नई जानकारियां हासिल हुई, वरना सब लोगों का यही मानना है कि जम्‍मू में एक वैष्‍णोमाता के सिवा कोई और दर्शनीय स्‍थल नहीं है।

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    1. हां जी, यही सब मानते हैं। धन्यवाद आपका।

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  7. Ek Baar fir se bahut achha vivran... mata vaishno devi toh bahut baar gaya hoon par kabhi Jammu ghoomne ka samay nahi nikaal paya... is baar zaroor jayoonga... Thank you Neeraj Sir....

    Gurpal Singh
    Jalandhar

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    1. तवी नदी के किनारे बसे जम्मू में भी कई दर्शनीय स्थल हैं। अगली बार जाओगे तो अवश्य देखना।

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  8. बहुत सुन्दर मनोरम फोटोज के साथ जम्मू भ्रमण यात्रा संस्मरण प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
    पूड़ी तो भटूरा जैसा दिख रहा है ...
    बन्दर वाला विडिओ भी बड़ा रोचक लगा ...

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  9. सफर में तकलीफें तो आती ही है नीरज भाई ओर गुस्सा भी पर वो किसी पर जाहिर नही होना चाहिए...

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    1. कोशिश करता हूं जाहिर न करने की लेकिन हो जाता है...

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  10. जम्मू की सैर तो आपके साथ हमने भी कर ली। हम तो सिर्फ वैष्णोदेवी जा कर वापिस आ गये थे। मेरे भतीजे ने जरूर आपकी ही तरह दिल्ली लद्दाख यात्रा बािक से की थी अपने कॉलेज के दोस्तों के साथ उसका वर्णन सुना था। बहुत दिलचस्प यात्रा है आपकी।

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  11. बहुत ही बढ़िया वर्णन... जम्मू यात्रा के रोचक दर्शन हुए... वैसे अर्नब ने ठीक ही कहा हैं की वह पुड़ी हैं, भटूरा थोडा अलग होता हैं.... क्योंकि इसका कारण यह हैं की जम्मू, पंजाब आदि से आगे के प्रान्तों में मैदे की पुड़ी और छोले को ही भटूरे-छोले कहा जाता हैं, लेकिन भटूरे ताज़ा-ताज़ा कड़ाही से निकाल कर नहीं दिए जाते हैं, मतलब की भठूरे पहले किसी फैक्ट्री में बना लिए जाते हैं और फिर बाद में इसे दुकानों, ढाबो आदि पर सप्लाई कर दिए जाते हैं, और फिर वह ढाबे या ठेले वाले उन भटूरो को तवे पर गर्म करके छोले के साथ खाने के लिए परोसते हैं. इनका स्वाद ब्रेड और पाँव रोटी का मिश्रण जैसा होंता हैं, लेकिन इन्हें तेल या रिफाइन में तला जाता हैं....
    नवज्योत कुमार

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    1. वो कुल्चे होते हैं सर जी, भटूरे नहीं। भटूरे पूरियों की ही तरह होते हैं। मामूली सा ही अन्तर होता है।

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    2. भटूरे मुख्यतः मैंदा को दही थोड़ी से शक्कर डाल का खमीर उठाने के बाद तले जाते है जबकि पूड़ी सादा आंटे को गूथ कर बनाई जाती है

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  12. Bahut shandar varnan Neeraj ji. Abhi abhi Kashmir hokar aae hain to aur maja aa raha hai.

    Thanks,
    Mukesh....

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  13. Neeraj bhai ye to bhature hi hai

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    1. हां जी, मुझे भी भटूरे ही लग रहे थे लेकिन अर्णव को ज्यादा जानकारी है।

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  14. जम्मू वर्णन बढ़िया है ।हमने खोह के दर्शन नहीं किये क्योकि उसकी जानकारी नहीं थी । रधुनाथ मन्दिर तुमने मिस कर दिया वैसे वो बढ़िया मन्दिर था। पटनीटॉप का एक आध फोटु तो बनता था।

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  15. आपकी यात्रा विवरंण पढ़कर लगा की सामान और उसको बांधना एक गंभीर समस्या है । आपने जिस तरीके से उसे बाँध रखा था वो शायद सही नहीं लग रहा ।
    कोई ऐसा उपाय हो जिसमे पीछे बैठने वाले को सुबिधा हो और रोज के खोलने और बाँधने का झमेला न हो ।
    इससे निशा जी भी आपके प्रकोप से बच जायेगी ।
    यात्रा के दौरान हम walkie का इस्तमाल करे तो मोबाइल वाली दिक्कत से मुक्ति मिल सकती है

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    1. सामान बांधना भी एक कला है और यह अभ्यास से आती है। अगले ही दिन हमें सामान बांधना आ गया। फिर तो ऐसा बांधा कि कभी कोई दिक्कत नहीं हुई।
      रही बात वॉकी-टॉकी की तो, अच्छी रेंज के वॉकी-टॉकी महंगे आते हैं और कुछ इनकी परमिशन की भी झंझट होती है।

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  16. neeraj ji aapki bike konsi hai ? janane ke jigyasa ho rahi hai

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  17. wese aap sahi maayno me ghummakari ke devta hain

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

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ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब