Skip to main content

लद्दाख बाइक यात्रा- 11 (खालसी-लेह)

14 जून 2015,
आज रविवार था और हम खालसी में थे। हमें आगे की यात्राओं के लिये चुशुल, हनले और चुमुर के परमिट की आवश्यकता थी। लेकिन आज परमिट नहीं बन सकता। इसलिये योजना थी कि आज खारदुंगला पार करके पनामिक तक पहुंचने की कोशिश करेंगे। कल तुरतुक और परसों वारी-ला के रास्ते कारू पहुंचेंगे, टंकी फुल करायेंगे और परमिट बनवाने लेह आ जायेंगे। उसके बाद फिर कारू और आगे पेंगोंग की तरफ चले जायेंगे।
लेकिन नौ बजे सोकर उठे। जब तक यहां से चले, तब तक दस बज चुके थे। यहां से लेह सौ किलोमीटर दूर है और शानदार टू लेन सडक बनी है। काफी रास्ता समतल है इसलिये तीन घण्टे में लेह पहुंच जाने का इरादा था।
रास्ता सिन्धु के साथ साथ है। ससपोल से आगे ऊपर चढकर जहां से लिकिर गोम्पा के लिये रास्ता अलग होता है, हम रुक गये। यहां काफी लम्बा-चौडा मैदान है। अच्छा लगता है। दस मिनट यहां रुके, फिर चल पडे।
बारह बजे तक निम्मू पार कर लिया। यहां सिन्धु में जांस्कर नदी आकर मिलती है। जांस्कर एक बहुत बडे इलाके का पानी अपने साथ लाती है। इसका जल-प्रवाह क्षेत्र इतना दुर्गम है कि आज तक वहां ढंग की सडक भी नहीं बन पाई है। इसी जांस्कर घाटी में सर्दियों में चादर ट्रेक होता है। नदी जम जाती है और इस पर ट्रैकिंग की जाती है।
हल्की बूंदें भी पडने लगी थीं और सामने खारदुंगला की तरफ घने काले बादल दिख रहे थे। खारदुंगला पर बूंदें तो नहीं पडतीं लेकिन बर्फ गिर जाया करती है, जो दर्रे को बन्द भी कर सकती है। दोपहर हो चुकी थी। दोपहर बाद तो ऊंचे दर्रों पर मौसम खराब होना आम बात ही है। जितना विलम्ब करेंगे, उतना ही हम नुकसान में रहेंगे। निशा को एक इशारा किया और वो तुरन्त मान गई। न मैग्नेटिक हिल के पास रुके और न ही पत्थर साहिब पर। सीधे लेह जाकर ही रुके। एक बज चुका था।
हवा पूरी तूफानी चल रही थी। जब हम लेह पहुंचने ही वाले थे, तो बर्फ की नन्हीं नन्हीं बजरियां गिरने लगीं। खारदुंगला लेह से लगभग 2000 मीटर ऊपर है। लेह में अगर बजरी गिर रही है तो खारदुंगला के बारे में सोचना बन्द कर देना चाहिये। वही हमने किया और एक कमरा लेने के बारे में सोचने लगे। पहले तो सोचा कि कुछ देर रुककर प्रतीक्षा कर लेते हैं ताकि मौसम खुलने के आसार हो जायें। लेकिन दोपहर बाद मौसम खराब होता ही है और यह रात होने तक और कभी कभी तो आधी रात तक, सुबह तक भी खराब ही रहता है। इसलिये मौसम खुलने का इंतजार करना मूर्खता ही थी।
दो रास्ते थे- या तो खराब मौसम में खारदुंगला पार करो या फिर लेह में रुको और सुबह प्रस्थान करो। हमने लेह में रुकने का विकल्प चुना। लगभग 5350 मीटर ऊंचे खारदुंगला पर ऐसे मौसम में जाना बिल्कुल भी ठीक नहीं था।
एक गेस्ट हाउस में कमरे की बात की। उसने 600 रुपये किराया बताया, हम 500 पर अडे रहे। बात नहीं बनी और हम आगे चल दिये। मुख्य बाजार में सडक खुदी पडी है, सौन्दर्यीकरण का काम चल रहा है, तो ट्रैफिक डायवर्ट था। मुझे मुख्य बाजार वाले रास्ते की जानकारी तो थी लेकिन इस डायवर्जन वाले रास्ते का कुछ भी पता नहीं था। कुछ आगे जाकर इसे छोड दिया और भीडभाड वाली एक अन्य सडक पर चल दिये। बाइक बाहर खडी की और मैं कमरे की पूछने अन्दर गया। रिसेप्शन पर उसने मुझसे पूछा- कैसा कमरा चाहिये? डीलक्स या सेमी डीलक्स? मैंने कहा- नहीं चाहिये और वापस लौट आया। अब तक हम छह सौ का कमरा लेने को तैयार हो चुके थे, अगर यहां नहीं मिलेगा तो पीछे जो मिला था, उसी में चले जायेंगे। फिर कुछ और आगे गये और एक सुनसान सी गली में एक गेस्ट हाउस में चले गये। अन्दर दो कर्मचारी थे- दोनों बिहारी। दोनों बिल्कुल मासूम से। उन्होंने पूछा- कितने आदमी हो? मैंने कहा- भाई, दो हैं, तू बस सबसे सस्ते वाले के रेट बता दे। उन्होंने एक दूसरे की तरफ देखा और कुछ देर बाद एक ने कहा- सस्ता तो नहीं है हमारे यहां। महंगे ही हैं सभी। दूसरे ने कहा- एक आदमी हो तो चार सौ का और दो हों तो छह सौ का। मैंने यहां भी मोलभाव की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी। छह सौ का ही ले लिया।
बाइक गेस्ट हाउस के आंगन में खडी कर दी। काम का थोडा सा सामान उतार लिया, बाकी बंधा रहने दिया। सामान बांधने में बडी मेहनत लगती है। रस्सियां खींच-खींचकर उंगलियां दुखने लगती हैं।
और जब रजिस्टर में एण्ट्री करने लगे तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैं भागकर निशा के पास कमरे में गया और उसे रिसेप्शन पर ले आया- ये देख। रजिस्टर में जो आखिरी एण्ट्री थी, वो नाम था- देवेन्द्र कोठारी। वे कल यहां आये थे। लडकों से पूछा तो उन्होंने बताया- ये आज सुबह नुब्रा घाटी गये हैं। अपना कुछ सामान यहीं छोडकर गये हैं। कल तक वापस आयेंगे, तब लेंगे। यहां मुझे उनका पोस्ट-पेड नम्बर भी मिल गया और ये भी पक्का हो गया कि कल जब हम खारदुंगला पार करके नुब्रा घाटी जायेंगे, तब कहीं रास्ते में कोठारी साहब से मुलाकात होगी। रजिस्टर के उस पन्ने का फोटो भी खींचा।
आपको याद होगा कि आज से चार दिन पहले कोठारी साहब हमसे श्रीनगर में बिछुड गये थे। हम रोज उनके बारे में सोचा करते थे- कोठारी साहब कहां होंगे? कभी तो हम मानते थे कि वे वापस चले गये होंगे। अक्सर साथी के अभाव में बहुत से यात्री यात्रा अधूरी छोडकर लौट जाते हैं। शायद कोठारी साहब भी लौट गये होंगे। हमारे ही भरोसे वे लद्दाख की हिम्मत जुटा पाये थे। कभी सोचते कि वे लेह भी जायेंगे, शायद खारदुंगला भी चले जायें और मनाली के रास्ते वापसी करेंगे। शायद नुब्रा घाटी और पेंगोंग की तरफ वे न जायें।
फोन नम्बर के अभाव की वजह से हम बिछडे थे। अब हमारे पास उनका नम्बर था। फोन किया तो नहीं मिला। मिलेगा भी कैसे? नुब्रा घाटी में बीएसएनएल को छोडकर अन्य किसी का भी नेटवर्क नहीं है। लेकिन कोई बात नहीं। कल कोठारी साहब उधर से लेह आयेंगे और हम लेह से उधर जायेंगे। हम दोपहर से पहले ही खारदुंगला पार कर लेंगे और उन्हें खारदुंगला पार करते करते दोपहर बाद हो जायेगी। खारदुंगला के बाद ट्रैफिक नहीं मिलेगा। आमने-सामने टकरायेंगे तो हम उन्हें दूर से ही पहचान लेंगे।
कल हम कोठारी साहब से मिलने वाले हैं।
अगले दिन यानी 15 जून को सोमवार था। अब बिना परमिट लिये नुब्रा घाटी जाना मूर्खता होगी। क्योंकि हम नुब्रा से वापस लेह नहीं आना चाहते थे। नुब्रा से सीधे पेंगोंग जाने के दो रास्ते हैं। एक तो वारी-ला, चांग-ला होते हुए और दूसरा श्योक होते हुए। वारी-ला, चांग-ला वाला बेहद ऊंचे दर्रों से होकर गुजरता है जबकि श्योक वाला नदी के साथ साथ है। यानी दोनों रास्ते एक साथ बन्द होने के चांस बेहद कम हैं। हम नुब्रा से सीधे पेंगोंग चले ही जायेंगे। पेंगोंग से आगे चुशुल जाने के लिये हमें परमिट की आवश्यकता थी।
अगर किसी वजह से हम आज रास्ते में कोठारी साहब से न मिले तो? इसके लिये एक पत्र लिखा। इस पर अपना आगामी पूरा कार्यक्रम लिख दिया और यह भी लिख दिया कि जहां भी सम्भव हो, मिलो जरूर। सम्भावना पेंगोंग पर मिलने की थी। हम परसों या उससे अगले दिन पेंगोंग पहुंचेंगे। कोठारी साहब आज लेह आ जायेंगे। वे भी परसों आसानी से पेंगोंग पहुंच सकते हैं। साथ ही यह भी लिख दिया कि कल डीसी ऑफिस जाकर मारसिमिक-ला, चुशुल, हनले और चुमुर का परमिट बनवा लेना। पत्र होटल वाले को दे दिया।
हम नौ बजे डीसी ऑफिस पहुंच गये। इसके पीछे ही फोटोस्टेट की दुकान है, जहां से परमिट फार्म और एप्लीकेशन फार्म मिल जाते हैं। अगर आपके पास एप्लीकेशन फार्म नहीं है तो आप सादे कागज पर भी लिख सकते हैं कि सर जी, हमें फलां से फलां तारीख तक फलां फलां स्थानों की यात्रा करनी है, हम इतने सदस्य हैं, कृपया परमिट देने की कृपा करें। इसके साथ आपको अपनी आईडी की फोटो कॉपी भी लगानी होगी।
मैंने मारसिमिक-ला, चुशुल, हनले और चुमुर के परमिट के लिये आवेदन किया। यहां के कर्मचारी बहुत अच्छे हैं। एक एक बात को बारीकी से समझाते हैं। यहां तक कि वे आपको परमिट लिखने के लिये सादा कागज भी दे देंगे और इस पर क्या क्या लिखना है, वो आराम से समझायेंगे। रास्ते का नक्शा बतायेंगे और यह भी बतायेंगे कि कहां का परमिट लगता है और कहां का नहीं लगता। आधे घण्टे में एक से सुलटेंगे तो कोई दूसरा आ जायेगा; उसे भी सब बातें बतायेंगे। मेरा फार्म देखकर उन्होंने कहा कि चुशुल और हनले का परमिट तो आसानी से मिल जायेगा लेकिन चुमुर का परमिट नहीं मिलेगा। क्यों? क्योंकि इस सीजन में और पिछले साल हमने चुमुर का परमिट जारी नहीं किया है। अगर हम जारी कर दें तो उधर मिलिट्री बैठी है, वो हमसे पूछेगी कि क्यों चुमुर का परमिट दिया। फिर भी अगर आपको चुमुर जाना है तो आप हनले जाकर मिलिट्री, आईटीबीपी से पता कर लेना। उनका मौखिक जवाब ही परमिट होता है। अगर आपका सेना में अच्छे पद पर कोई जानकार है, तब तो वे शायद जाने दें अन्यथा नहीं जाने देंगे।
मारसिमिक-ला के बारे में उन्होंने बताया कि वहां का परमिट नहीं लगता है। क्यों? क्योंकि पेंगोंग क्षेत्र में मेरक तक आप बिना परमिट के जा सकते हैं। जबकि मारसिमिक-ला का रास्ता मेरक से बहुत पहले ही अलग हो जाता है, इसलिये वहां का भी परमिट नहीं लगेगा। मैंने कहा कि पेंगोंग और मेरक जाने का जो मेन रास्ता है, उस का परमिट नहीं लगता लेकिन अगर हम इस रास्ते को छोडकर तिब्बत सीमा की तरफ जायेंगे तो परमिट लगेगा, भले ही वो रास्ता कहीं से भी निकले। आपके अनुसार मारसिमिक-ला का परमिट नहीं लगता, तो आप मुझे इस परमिट फार्म पर लिखने दो कि मैं उधर का परमिट मांग रहा हूं। चूंकि आपके अनुसार वहां बिना परमिट के जा सकते हैं लेकिन मैं वहां परमिट लेकर जाना चाहता हूं। आप मुझे मारसिमिक-ला का परमिट दो। इस पर उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की। परमिट फार्म से चुमुर काट दिया।
एक लडके ने आठ दिन का केवल हनले का परमिट बनवाया। वे हिमाचल के रहने वाले करण थे और तरुण गोयल को अच्छी तरह जानते थे। वे एक सिविल इंजीनियर हैं और हनले मोनेस्ट्री पर कोई डॉक्यूमेण्ट्री बनाना चाहते थे। हम परमिट लेकर नुब्रा घाटी जायेंगे और वे हनले। उम्मीद है कि हम हनले में पुनः मिलेंगे।
पांच दिन का परमिट बनवाया था, कुल 600 रुपये लगे। कुछ परमिट फीस थी, कुछ पर्यावरण चार्ज था, कुछ रेडक्रॉस का चार्ज था, कुछ और भी तरह के खर्चे थे। सभी की रसीद मिली। इतना होने के बाद आखिरी काम था डीसी साहब के हस्ताक्षर कराने का। लेकिन वे कहीं बाहर दौरे पर गये थे।
बाहर खडे होकर प्रतीक्षा करने लगे। इतने में कर्नाटक के वे बाइक वाले आ गये जो हमें परसों खालसी में मिले थे और उसी गेस्ट हाउस में ठहरे थे, जिसमें हम। मैं परमिट फार्म और एप्लीकेशन फार्म की कई फोटोकॉपी कराकर ले आया था। एक-एक कॉपी उन्हें दे दी। वे सब बडे खुश हुए। एक बाइकर फार्म लेकर अन्दर चला गया। बाकी सभी काजू-बादाम खाने लगे। हम दोनों को भी हिस्सेदार बनाया।
नीचे पोलो ग्राउण्ड था। ढाई साल पहले जब मैं जनवरी में यहां आया था तो गणतन्त्र दिवस की परेड यहीं हुई थी। भीषण ठण्ड थी उस समय। लेकिन अभी भी मौसम अच्छा नहीं था। ऊपर घने बादल थे और बारिश भी होने लगी थी। हमने रेनकवर से बाइक पर बंधे सामान को ढका और डीसी ऑफिस की इमारत में शरण ली।
ढाई बजे साहब आये और तब परमिट पर हस्ताक्षर हुए।
फटाफट पास में एक सरदारजी के होटल में खाना खाया। बाइक की टंकी फुल करा ली और दो लीटर की एक बोतल भी भरवा ली। सवा तीन बजे हम खारदुंगला वाले मोड पर खडे थे। हालांकि अभी भी ऊपर खारदुंगला पर मौसम खराब था लेकिन हम ऐसे में ही निकल पडते। हम अपने कार्यक्रम से पीछे चल रहे हैं। अगर और पीछे हुए तो आने वाले दिनों में हमें ज्यादा बाइक चलानी पडेगी जो अच्छी बात नहीं है। लेकिन तभी एक विचार आया। आज भी यहीं रुकते हैं। आज कोठारी साहब नुब्रा से लेह आयेंगे। उन्होंने अब तक शायद खारदुंगला पार भी कर लिया हो। लेह और खारदुंगला ठीक इसी तरह हैं जैसे मनाली और रोहतांग। रास्ते में खूब ट्रैफिक होता है। हमारे पास भी हेलमेट है और उनके पास भी। वे बराबर से निकल जायेंगे और हमें पता भी नहीं चलेगा। आज अगर हम लेह में ही रुकते हैं तो कोठारी साहब से मिलना निश्चित है।
निशा भी इस बात से सहमत थी। बाइक वापस उसी होटल की तरफ मोड दी। होटल वाले से पत्र वापस ले लिया और कमरे में जाकर लेट गये। नीचे जरा सी भी आहट होती, हम सोचते कोठारी साहब आ गये। लेकिन छह बजे तक वे नहीं आये। उधर अब तक मौसम बिल्कुल साफ हो चुका था। खारदुंगला पर बादलों का निशान भी नहीं था। एक बार तो पछताये कि निकल पडना चाहिये था। साफ मौसम में खारदुंगला पार कर लेना चाहिये था।
साढे छह बजे हम पैदल ही शान्ति स्तूप देखने चल दिये। पिछली बार जनवरी में मैं उधर गया था। चांग्स्पा रोड तब बिल्कुल खाली पडी थी, सभी दुकानें बन्द थीं। लेकिन अब बहुत हलचल थी। खूब सारे मनी चेंजर थे। बुलेट किराये पर देने वाले थे। बार-होटल थे। ऊनी कपडों के शोरूम थे।
शान्ति स्तूप से लौटे तो अन्धेरा हो चुका था। मुख्य बाजार में फास्ट फूड की एक दुकान थी। आलू की टिक्कियां पैक करा ली और यहीं बैठकर रसमलाई खाई। वैसे तो कायदा यह है कि स्थानीय भोजन करना चाहिये था लेकिन व्यावसायिकता इतनी हावी है कि लेह शहर में थुकपा आदि आसानी से नहीं मिलते। फिर स्थानीय भोजन पूरी तरह मांस पर आधारित है। मैदानों से शाकाहारी लोग जाने लगे तो मांस एक तरफ होने लगा और शाक ने अपनी जगह बना ली। अब कम से कम लेह शहर में शाकाहारी भोजन ही ज्यादा मिलता है। जो मांसाहारी भोजन है, जैसे मोमो, थुपका आदि; तो उसमें भी परिवर्तन करके उसे भी शाकाहारी बना दिया गया है। हां, लद्दाखी नमकीन चाय हर जगह मिलती है लेकिन इसे पीना हर किसी के बस का नहीं।
हमने शाम को कोठारी साहब को फोन नहीं किया था। उन्हें हमारे भी यहीं ठहरने के बारे में पता चल गया होगा लेकिन हम जब चुपके से जाकर उनसे मिलेंगे, उस क्षण का अलग ही आनन्द होगा। हम पहले ही फोन करके उस आनन्द से वंचित नहीं होना चाहते थे।
अपने गेस्ट हाउस वाली सुनसान गली में हम मुडे। सामने गेस्ट हाउस का दरवाजा दिख रहा था। चार पांच कदम चलकर हमें दरवाजे में दाहिने मुड जाना है। और सामने हमारी बाइक के बराबर में कोठारी साहब की बाइक खडी मिलेगी। हम भयंकर तरीके से रोमांचित थे इस समय।
दरवाजे में दाहिने मुडे तो केवल हमारी बाइक ही खडी थी। कोई दूसरी बाइक नहीं खडी थी। इसका मतलब कोठारी साहब नहीं आये? होटल वाले ने भी इसकी पुष्टि कर दी कि वे नहीं आये। रात के आठ बज चुके थे, फिर नौ भी बज गये। कोठारी साहब नहीं आये। हमने सोचा कि आज दिनभर खारदुंगला पर मौसम खराब रहा है, बर्फ भी पडी होगी। शायद रास्ता बन्द हो गया हो और वे उस तरफ ही रह गये हों। खैर, जायेंगे कहां? कल आयेंगे।
फिर हम सो गये।

खालसी में इतना खाना 80 रुपये का था। चावल, अण्डा कढी, दाल, आलू की सब्जी और सलाद।




लिकिर मोड। बायें रास्ता खालसी और आगे श्रीनगर चला जाता है जबकि सीधे लिकिर गोम्पा।




निम्मू में सिन्धु-जांस्कर संगम।

यह एक अदभुत संयोग था कि लेह में गली गली में गेस्ट हाउस हैं। लेकिन हम उसी में गये जिसमें कोठारी साहब एक दिन पहले आये थे। 

डीसी ऑफिस के सामने साहब की प्रतीक्षा में।

डीसी ऑफिस से दिखता शान्ति स्तूप।

शान्ति स्तूप से दिखता खारदुंगला। बर्फ तो काफी है, ताजी बर्फ भी गिरी है लेकिन इस समय मौसम साफ है।

शान्ति स्तूप

शान्ति स्तूप से लेह शहर का नजारा




लेह का मुख्य बाजार। इसमें सौन्दर्यीकरण का काम चल रहा है इसलिये सारा सौन्दर्य बिगडा पडा है।



रात में लेह


ट्राइपॉड प्रयोग न करने, रात का समय होने और अत्यधिक जूम करने के कारण फोटो ब्लर आई है। यह शान्ति स्तूप है जो लेह के बाजार से दिख रहा था।




अगला भाग: लद्दाख बाइक यात्रा-12 (लेह-खारदुंगला)


1. लद्दाख बाइक यात्रा-1 (तैयारी)
2. लद्दाख बाइक यात्रा-2 (दिल्ली से जम्मू)
3. लद्दाख बाइक यात्रा-3 (जम्मू से बटोट)
4. लद्दाख बाइक यात्रा-4 (बटोट-डोडा-किश्तवाड-पारना)
5. लद्दाख बाइक यात्रा-5 (पारना-सिंथन टॉप-श्रीनगर)
6. लद्दाख बाइक यात्रा-6 (श्रीनगर-सोनमर्ग-जोजीला-द्रास)
7. लद्दाख बाइक यात्रा-7 (द्रास-कारगिल-बटालिक)
8. लद्दाख बाइक यात्रा-8 (बटालिक-खालसी)
9. लद्दाख बाइक यात्रा-9 (खालसी-हनुपट्टा-शिरशिरला)
10. लद्दाख बाइक यात्रा-10 (शिरशिरला-खालसी)
11. लद्दाख बाइक यात्रा-11 (खालसी-लेह)
12. लद्दाख बाइक यात्रा-12 (लेह-खारदुंगला)
13. लद्दाख बाइक यात्रा-13 (लेह-चांगला)
14. लद्दाख बाइक यात्रा-14 (चांगला-पेंगोंग)
15. लद्दाख बाइक यात्रा-15 (पेंगोंग झील- लुकुंग से मेरक)
16. लद्दाख बाइक यात्रा-16 (मेरक-चुशुल-सागा ला-लोमा)
17. लद्दाख बाइक यात्रा-17 (लोमा-हनले-लोमा-माहे)
18. लद्दाख बाइक यात्रा-18 (माहे-शो मोरीरी-शो कार)
19. लद्दाख बाइक यात्रा-19 (शो कार-डेबरिंग-पांग-सरचू-भरतपुर)
20. लद्दाख बाइक यात्रा-20 (भरतपुर-केलांग)
21. लद्दाख बाइक यात्रा-21 (केलांग-मनाली-ऊना-दिल्ली)
22. लद्दाख बाइक यात्रा का कुल खर्च




Comments

  1. सुबह-सुबह ऑफिस आकर कोई तो लैपटॉप खोल के कम धंधे शुरू करता है एक में साला लैपटॉप खोलते ही "नीरज जाट" टाइप करके सपनों में तैरना शुरू कर देता हूँ खैर इन बातों को छोड़ो किश्तें जल्दी-जल्दी भेजा करो आलसी मत बनों

    फोटोग्राफी शानदार है सीधे पहाड़ों में ले जाती है मुफ्त में.

    धन्यवाद

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद सैनी साहब... जल्दबाजी की बात मत करिये। जैसे ही मौका मिलता है, मैं पोस्ट कर देता हूं।

      Delete
    2. 3 या 4 दिन में किश्त आती है तो ज्यादा आनन्द देती है।
      जल्दी जल्दी आएगी तो क्रेज ख़त्म हो जायेगा

      तुसी ग्रेट हो भाई

      Delete
    3. 3 या 4 दिन में किश्त आती है तो ज्यादा आनन्द देती है।
      जल्दी जल्दी आएगी तो क्रेज ख़त्म हो जायेगा

      तुसी ग्रेट हो भाई

      Delete
    4. 3 या 4 दिन में किश्त आती है तो ज्यादा आनन्द देती है।
      जल्दी जल्दी आएगी तो क्रेज ख़त्म हो जायेगा

      तुसी ग्रेट हो भाई

      Delete
  2. rakesh ji bilkul sahi kaha aapne..

    ReplyDelete
  3. Neeraj bhai aap bahut hi shandar likhte ho
    Photo mast h. Iss post m video nhi dikhe.
    1 ques.h aapne leh m highest kithi speed m bike drive ki?
    All the best for next.

    ReplyDelete
    Replies
    1. रिंकू भाई, हर जगह हमने वीडियो नहीं बनाई। जहां भी वीडियो बनाई, जब वहां जायेंगे तो उन वीडियो को भी लगाऊंगा।
      लेह में या लद्दाख में?? लेह में भीडभाड थी, इसलिये ज्यादा तेज नहीं चलाई।
      हां, लद्दाख में अधिकतम 110 तक की रफ्तार पकड ली थी। लिकिर मोड के बाद जहां सीधी सडक है। हनले के रास्ते में भी स्पीड मिल गई थी।

      Delete
  4. Neeraj bhai photo jabardast he ...lekin muze 8 no ka photo jada pasant ayya .....vaHA par bike chala neka man kar raha he :)
    Khardungla ka permit nahi liya aapne ...........

    ReplyDelete
    Replies
    1. सर जी, अब खारदुंगला का परमिट नहीं लगता।

      Delete
  5. एक सवाल क्या लेह में साँस लीं में परेशानी होती है और क्या छोटे बच्चों के साथ जाना संभव है,बाकि तो बढ़िया पोस्ट है ,चादर ट्रेक के बारे में थोड़ा और जानकारी दीजिये

    ReplyDelete
    Replies
    1. सांस लेने का मामला सबका व्यक्तिगत मामला होता है। बहुत कम लोगों को होती है, वो भी रास्ते में पडने वाले दर्रों पर। ज्यादातर कोई समस्या नहीं होती।
      और छोटे बच्चों के साथ जाना भी सम्भव है। लेकिन अगर कोई समस्या है तो वो सांस की ही है... और यह बात वहीं जाकर पता चलती है।
      लेह में कोई दिक्कत नहीं होगी। दिक्कत के स्थान केवल ऊंचे दर्रे ही हैं। ज्यादातर बच्चों को भी कोई दिक्कत नहीं होती... लेकिन दिक्कत होगी या नहीं, यह तो वहीं जाकर पता चलता है।

      Delete
    2. पिछले साल लेह गया था (July 2014) तो मोनेस्ट्री में पुणे के डॉक्टर मिले थे ... हाला की हम पुणे के थे इसलिए हम सब उनसे पुछताछ करने लगे .... उन्होने बताया वह पहिली बार फॅमिलि के साथ लेह आये थे उनका १० साल का लडका हॉस्पिट्ल में था .... उसे साँस लेने में तकलिफ हो रही थी ....

      Delete
    3. जी, यह सबकी व्यक्तिगत बात होती है कि सांस लेने में दिक्कत होगी या नहीं।

      Delete
  6. मुझसे मिलने की आपकी इच्छा भावुक कर गई। मिलना कितना रोमांचकारी होता.... हम आप समझ सकते।
    बिछूड़ने के कारण जहाँ मैं जा नहीं पाया वहाँ के अनुभव इन यात्रा वृतांत व आपके कैमरे की ऑंख से काफी हद अपनी उपस्थिति महसूस कर रहा हूँ।
    खेद इस बात का जरूर है कि मेरे से मिलने की चाह में आपके कार्यक्रम में विलम्ब हुआ।

    ReplyDelete
  7. नीरज जी, आपकी पिछली पोस्ट में ऊंचाइयों पर पहुंचने से मन में गर्व की अनूभुति के बारे में पढा.
    लगभग 7-8 साल पहले मैं भी सपरिवार सिक्किम के युमथांग वैली स्थित जीरो पोइंट गया था. यह जगह 4800 मीटर की ऊंचाइ पर है. इन ऊंचाइयों पर जाकर ही पता चलता है कि दूर से मटमैले दिखने वाले इन पहाडों को प्रकृति ने कितने रंगो नीले,पीले, लाल, गुलाबी, हरे, सफेद आदि से भर रखा है. हम जीरो पोइट पर 20-25 मिनट से ज्यादा नहीं रूक पाये ..अत्यधिक सर्दी थी और बच्चे भी छोटे थे, फिर हमारे किराए की 'ट्वेरा' के ड्राइवर को शायद वापिस जाने की जल्दी भी थी इसलिए हम 'नादानों' को उसने समझाया कि अगर कुछ देर और रूकेंगे तो गाडी का पेट्रोल जम जाएगा..(क्या पेट्रोल भी जमता है ?).
    ऊंचाइयों के मामले में नीरज जी के मुकाबले तो कुछ भी नहीं , लेकिन रत्ती भर का 'गर्व' तो मुझे भी अब होने लगा है…

    आज की पोस्ट में कोठारी जी वाला 'ससपेसं' तो अगली पोस्ट के लिए छोड ही दिया आपने..

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद सर जी...
      पेट्रोल का फ्रीजिंग तापमान -60 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे होता है। इतना तापमान लद्दाख में केवल कुछ बेहद ऊंचाईयों पर ही होता है, वो भी सर्दियों में। सर्दियों में लेह का तापमान -25 या -30 डिग्री तक ही जाता है।
      आप सपरिवार युमथांग वैली के जीरो पॉइंट तक गये थे। इसका अर्थ है कि आप गर्मियों में ही गये होंगे। गर्मियों में 4800 मीटर की ऊंचाई पर अगर धूप निकली है तो तापमान 30 डिग्री से ऊपर ही रहता है यानी काफी गर्मी रहती है। हां, अगर मौसम खराब हो, बारिश हो रही हो या बर्फ पड रही हो तो तापमान शून्य से थोडा बहुत नीचे जा सकता है। लेकिन इतना नीचे कभी नहीं जायेगा कि पेट्रोल जमने लगे। आप यह समझ लीजिये कि भारत में आबादी वाले किसी भी स्थान पर किसी भी मौसम में पेट्रोल नहीं जम सकता।
      हां, डीजल शून्य से नीचे जाने पर जमना शुरू कर देता है।

      Delete
    2. हम नवम्बर के मध्य में गये थे. गंगटोक से जीरो पोइंट के बीच एक गांव में नाइट होल्ड करके बहुत सवेरे ही जीरो पोइटं पहुचे थे, बरफ बहुत थी.

      Delete
    3. इतने तापमान में पेट्रोल नहीं जमता।

      Delete
  8. नीरज जी आपके ब्लॉग को पढ़ कर मुझे ऐसा लगता है की मैं भी अपपके जैसा ही ट्रॅवेल करूँ पर मुझे bike चलानी नहीं आती अगर आप फिर कभी लद्दाख जाएँगे तो प्लीज़ मुझे बोलें मैं अपपके साथ ट्रॅवेल करना चाहता हूँ और सीखना चाहता हूँ की कम पैसे मैं कैसा घुमा जाता है

    ReplyDelete
    Replies
    1. बाइक चलानी सीख लो नवीन जी... तब साथ चलेंगे।

      Delete
  9. क्या लेह में कुछ खरीदारी कर सकते है .... पिछले साल ' तिबेटी बाजार' में खरीदारी करने गया था ... हर चीझ दुगने किमत पर थी ... मेरा प्रश्न यह था ... लेह में क्या खरीदना चाहिए ? ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. लेह में पश्मीना ऊन का सामान खरीदना चाहिये। कीमत का तो मुझे आइडिया नहीं है कि सस्ती होती हैं या महंगी लेकिन लद्दाख में पश्मीना ऊन का बडे पैमाने पर उत्पादन होता है। यह बेहद नरम ऊन होती है और गरम भी।

      Delete
  10. लेह शहर में पेड़ पौधों के हरियाली नज़र आ रही हैं लेकिन आसपास पहाड़ियों में पेड़ पौधे नज़र नहीं आ रहे हैं। क्या आस पास कँटीले झाड़ियों के अलावा भी पेड़ पौधे देखने को मिलते हैं कि नहीं? यदि हाँ तो कौन से पेड़ पौधे देखने को मिलते हैं? बताएगा?

    ReplyDelete
    Replies
    1. लद्दाख में पेड-पौधे नहीं होते। लेकिन जहां भी आबादी होती है, वहां पेड-पौधे लगाये जाते हैं। कोई गांव हो या लेह जैसा शहर हो, हरियाली जरूर मिलेगी। इसके अलावा कोई पौधा नहीं होता। अक्सर कंटीली झाडियां भी नहीं होतीं।

      Delete
  11. Agr Hum bike manali se kiraye par lete hain to kya manali se li gai kiraye ki bike leh ke kuch hisse mein le jana pratibandit hai? Aesa maine bike kiraye par dene walo ki website par pada hai ke pangong jana hai to leh se bike leni padegi or manali wali bike leh mein chorni padegi.

    Neeraj bhai kya September mein manali se bike se Jana thek rahega halaki monsoon ka prabhav laddak region par nahi hota hai.

    Aap ka yatra pad kar dil dimag sapno ki duniya mein chala jata hai.... Sochta hu mai bhi jaunga. App ko follow karta howa

    ReplyDelete
    Replies
    1. अब्दुल जी, लद्दाख से बाहर की कोई भी टैक्सी या किराये की बाइक केवल लेह तक ही ले जाई जा सकती है। अगर लेह से आगे खारदुंगला, नुब्रा घाटी या पेंगोंग जाना हो तो लेह से ही टैक्सी या बाइक लेनी पडेगी। व्यक्तिगत वाहनों पर यह प्रतिबन्ध लागू नहीं है। व्यक्तिगत वाहन कहीं तक भी ले जाये जा सकते हैं।
      सितम्बर में लद्दाख जाना अति उत्तम है।

      Delete
    2. धन्यवाद नीरज जी

      Delete
  12. बहुत बढ़िया पोस्ट और पोस्ट में कोठारी जी से मिलने का सस्पेंस वाला मैटर और शान्ति स्तूप का खूबसूरत फोटो का क्या कहना । सब मिला कर कह सकते है की यह पूरी यात्रा वास्कोडिगामा की यात्रा से कम नहीं है ।

    ReplyDelete
  13. Neerajbhai ladakh yatra me 125cc super splendor chalegi....??

    ReplyDelete
  14. Replies
    1. पढते रहिये... धीरे धीरे सब सामने आता जायेगा।

      Delete
  15. मैग्नेट हिल के बारे में संछिप्त जानकारी मिलेगी

    ReplyDelete
    Replies
    1. किशन ये तो अपने whatsap पर ही पूछना था जल्दी जवाब मिल जाता। यहाँ नीरज के पास कहाँ टाइम है।

      Delete
  16. परमिट की जरुरत क्यों होती है ।क्या यू ही हम अपने देश में घूम नहीं सकते । कोठारी साहेब तो इन वादियो में ग़ुम हो गए थे हम भी भूल गए थे। चलो अब जल्दी भारत मिलाप हो जाये

    ReplyDelete
  17. Sir ji is nachij ko 7 le kabhi leh area bike ride k liye... Dream trip h

    ReplyDelete
  18. Is nachij ko b kbhi leh bike ride k liye moka de apne sath niraj bhai

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब