Skip to main content

इन्दौर से पचमढी बाइक यात्रा

21 अगस्त 2015
   मुझे छह बजे ही उठा दिया गया, नहीं तो मैं अभी भी खूब सोता। लेकिन जल्दी उठाना भी विवशता थी। आज हमें पचमढी पहुंचना था जो यहां से 400 किलोमीटर से ज्यादा है। रास्ते में देवास से सुमित को अपने साले जी को भी साथ लेना था। सीबीजेड एक्सट्रीम पर मैं और निशा थे जबकि बुलेट पर सुमित और उनकी पत्नी। साले जी की अपनी बाइक होगी। सुमित ने हमें धन्यवाद दिया कि हम दोनों को देखकर ही उनकी पत्नी भी साथ चलने को राजी हुई हैं अन्यथा उनका दोनों का एक साथ केवल इन्दौर-देवास-इन्दौर का ही आना-जाना होता था, कहीं बाहर का नहीं।
   तो साढे छह बजे यहां से चल दिये। सुबह-सुबह का समय था, आराम से शहर से पार हो गये। मेन रोड यानी एनएच 3 पर पहुंचे। यह शानदार छह लेन की सडक है। देवास तक हम इसी पर चलेंगे, उसके बाद भोपाल के लिये दूसरी सडक पकड लेंगे।
   देवास में सुमित की ससुराल पहुंचे। साले जी ने चलने से मना कर दिया। वे तो हमें भी मना कर रहे थे लेकिन इस बार सुमित मन पक्का करके ही निकला था। पौने नौ बजे देवास छोड दिया और भोपाल की ओर चल दिये।
   देवास-भोपाल सडक चार लेन की है और बेहद शानदार बनी है। यह मध्य प्रदेश का स्टेट हाईवे नम्बर 18 है। रास्ते में सोनकच्छ, आष्टा, सीहोर में बाईपास भी हैं। शहर की भीड से बच जाते हैं। एक खास बात और है इस मार्ग की कि डिवाइडर खूब चौडा है। दस मीटर से भी ज्यादा। इस पर पेड-पौधे और झाडियां हैं जिससे निश्चित ही रात को वाहन चलाने में आसानी रहती होगी। कभी भी सामने से आने वाले वाहन की लाइटें हमें अन्धा नहीं करेंगीं।
   ग्यारह बजे सीहोर बाईपास पहुंचे। भूख लगने लगी थी। रुककर एक जगह हल्का-फुल्का खाया। भरपेट लंच करने से नींद आती है। फिर मैं तो सुबह सवेरे का उठा हुआ था, इसलिये मुझे सबसे पहले नींद आती।
   अब मुझे डर था भोपाल के ट्रैफिक का। मुझे शहरों की भीड बिल्कुल भी पसन्द नहीं है। हालांकि भोपाल में बाईपास अवश्य बना है लेकिन अगर आप देवास की तरफ से भोपाल जाकर फिर होशंगाबाद की तरफ जाना चाहते हैं तो आपको शहर से होकर ही जाना पडेगा अन्यथा बाईपास से चालीस किलोमीटर का फालतू चक्कर लगाओ। बारह बजे भोपाल पहुंचे। भीड ज्यादा महसूस नहीं हुई। फिर से दिल्ली को धन्यवाद दिया। आप यदि दिल्लीवासी हैं तो आपको शेष भारत में भीड नहीं दिखाई देगी।
   भोपाल में बीआरटीएस है यानी बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम। इसमें सडक की दो लेन केवल सार्वजनिक बसों के लिये आरक्षित कर दी जाती हैं। इससे सार्वजनिक परिवहन ज्यादा प्रभावशाली और गतिशील हो जाता है। भारत में कई जगह बीआरटीएस है। अहमदाबाद में भी है। दिल्ली में कुछ समय पहले इसे लागू करने की कोशिश की गई थी लेकिन यह बुरी तरफ असफल रहा। भीड ही इतनी ज्यादा होती है कि दो लेन बसों के लिये आरक्षित कर देने से बाकी लेनों में ट्रैफिक चला ही नहीं। भयंकर जाम लग जाता था। लेकिन यहां भोपाल में न केवल बाकी ट्रैफिक चल रहा है बल्कि मुझे तो अनारक्षित लेन भी बिल्कुल खाली-खाली ही दिखीं।
   वीआईपी रोड यानी झील के किनारे किनारे चल दिये। कुछ समय झील किनारे रुके और फोटो भी खींचे। भोपाल की झील एक बहुत बडी झील है। लेकिन यह केवल स्थानीय पिकनिक के ही काम आती है। मध्य प्रदेश अपनी इस झील को राज्य से बाहर निकालने में असफल रहा है। अन्यथा जो प्रसिद्धि आज भेडाघाट की है, उससे भी ज्यादा प्रसिद्ध यह विशाल झील होती।
   इसके बाद हम एनएच 12 पर पहुंच जाते हैं। इस पर भी काफी दूर तक बीआरटीएस है। अच्छी सडक तो है ही। हां, एक जगह फाटक है। फाटक के आसपास खराब है। बाईपास होने के कारण यहां ट्रकों का ट्रैफिक तो नहीं होता लेकिन जब भी फाटक लगते होंगे, यहां अच्छा खासा जाम लग जाता होगा।
   भैरोंपुर से हम राजमार्ग को छोडकर बायें मुड गये और भोजपुर रोड पर हो लिये। यहां से भोजपुर और आगे औबेदुल्लागंज तक अच्छी टू-लेन सडक है। भोजपुर के बारे में अगली पोस्ट में बताऊंगा। फिलहाल तो सीधे पचमढी ही चलते हैं। भोजपुर मन्दिर देखकर जब हमने प्रस्थान किया तो पौने तीन बज गये थे। हालांकि इरादा भीमबेटका भी देखने का था लेकिन मैंने यह कहकर बात टाल दी कि वापसी में देखेंगे। अभी भी पचमढी दो सौ किलोमीटर था और मैं अन्धेरे में बाइक नहीं चलाना चाहता था। अगर भीमबेटका जाते, तो चाहे कितनी भी जल्दी कर लेते, हमें होशंगाबाद तक ही अन्धेरा हो जाना था।
   औबेदुल्लागंज से लेकर होशंगाबाद तक सडक इतनी खराब कि चालीस किलोमीटर की इस दूरी को तय करने में हमें दो घण्टे लग गये। वैसे दो घण्टे केवल खराब सडक के ही कारण नहीं लगे, बल्कि इसमें पूरे रास्ते में पडने वाला जंगल भी उत्तरदायी था। औबेदुल्लागंज से होशंगाबाद तक रेलमार्ग से यात्रा करो या सडक मार्ग से; बडा अच्छा लगता है। पहाडी और जंगल से भरपूर रास्ता। कुछ ही देर पहले बारिश हुई थी, इसलिये कीचड हो गई थी। सडक बनाने का काम चल रहा है। बताते हैं कि यह होशंगाबाद से आगे बैतूल तक इसी तरह की खराब सडक है। बैतूल से नागपुर शानदार है।
   लेकिन फिलहाल हमें न तो बैतूल जाना था, न ही नागपुर। हमें जाना था पचमढी, इसलिये होशंगाबाद में नर्मदा पार करके इस राजमार्ग को छोड दिया और स्टेट हाईवे 22 पर चल दिये। यह टू-लेन है और टू-लेन पर डिवाइडर नहीं होता। कुछ दूर तो ट्रैफिक मिला लेकिन धीरे-धीरे सब पीछे छूट गया और सडक सुनसान हो गई। 70 की स्पीड पर भी कोई परेशानी नहीं हो रही थी। यह हाईवे जबलपुर होते हुए अमरकण्टक जाता है। होशंगाबाद से निकलते ही तवा नदी पार की। बडी चौडी नदी है यह और मानसून होने के कारण इसमें पानी भी खूब था। हां, तवा का पुल अच्छा नहीं था।
   शाम पांच बजे हम होशंगाबाद में थे। एक घण्टा चलकर चाय पीने और आराम करने रुके। लेकिन किसी होटल या ढाबे में नहीं, बल्कि एक छोटे से गांव में छोटी सी दुकान पर। ऐसी जगहों पर पैसे भी कम लगते हैं और चाय भी अच्छी मिलती है। बीस मिनट रुके और फिर चल दिये।
   सवा सात बजे पिपरिया पहुंचे। अन्धेरा हो चुका था और मैंने इरादा कर लिया था कि आज पिपरिया ही रुकेंगे। पचमढी अभी भी पचास किलोमीटर था और रास्ता पहाडी है इसलिये दो घण्टे तो लगेंगे ही। उधर सुमित पचमढी ही रुकना चाहता था। हालांकि मेरा और सुमित का तालमेल बेहद अच्छा है। अगर मैं पिपरिया ही रुकने को कहता तो सुमित बिल्कुल मना नहीं करता। लेकिन मुझे यह अच्छा नहीं लगा। निशा को सिखा दिया कि मैं तेरा नाम लेकर रुकने का प्रस्ताव रखूंगा। सुमित की पत्नी भी थक गई थीं, ‘निशा के प्रस्ताव’ से वे भी तुरन्त यहीं रुकने को कहेंगीं।
   लेकिन पिपरिया की भीड ने सारी योजना पर पानी फेर दिया। इतनी भीड और चारों तरफ वाहनों की ‘ट्याऊं-ट्याऊं’ से मैं तंग आ गया और निश्चय कर लिया कि यहां नहीं रुकते। फाटक लगा था, जाम लग गया लेकिन बाइक तो निकल ही जाती है। अब इरादा किया कि मटकुली रुकेंगे। वहां भी रुकने का कोई न कोई प्रबन्ध तो होगा ही, लेकिन मुझे कोई नहीं दिखा। अब तो पचमढी जाना मजबूरी थी।
   सिंगल लेन सडक है। रात का समय था, ट्रैफिक लगभग नगण्य था लेकिन दिक्कत तब आती जब कोई गाडी सामने से आ जाती। पर्वतीय रास्ता होने के कारण इस बात का भी निश्चय नहीं था कि बगल में कुछ समतल है या खाई ही है। सडक के बिल्कुल किनारे पर मैं रुक जाता और गाडी के निकल जाने पर फिर चलता।
   थकान इतनी ज्यादा हो गई कि मैंने निशा को बाइक चलाने को कहा। लेकिन कुछ ही दूर चले कि सामने से एक बस आ गई। निशा को पहाडों पर बाइक का अनुभव नहीं है। मैंने कहा कि सडक से नीचे मत उतारना। लेकिन घुमावदार सडक पर जब बस पास आई तो निशा बाइक को साइड में नहीं ले जा सकी और बस के ठीक सामने सडक के बीचोंबीच बाइक रोक दी। बस भी रुक गई। मैं नीचे उतरा, तब बाइक साइड में गई। बस के चले जाने पर मैंने फिर से बाइक अपने हाथ में ले ली।
   रात में चलने का यह एक नुकसान है। बाकी सडक बेहद शानदार बनी है। हम दिन में पचमढी से मटकुली आये थे, तब पता चला कि कितना अच्छा मार्ग है यह। रात नौ बजे हम पचमढी पहुंचे।

देवास से भोपाल की तरफ




पूरे रास्ते भर गायें बडा तंग करती हैं। यहां तो खैर एक ही गाय सडक पर बैठी है लेकिन ज्यादातर झुण्ड के झुण्ड सडक पर ही बैठी मिलती।

सीहोर बाईपास


भोपाल झील









नर्मदा पर बना रेल का पुल




तवा नदी



गौर से देखिये- इन्द्रधनुष दिखेगा।

पिपरिया की ओर

चाय की दुकान
अगला भाग: भोजपुर, मध्य प्रदेश


1. भिण्ड-ग्वालियर-गुना पैसेंजर ट्रेन यात्रा
2. महेश्वर यात्रा
3. शीतला माता जलप्रपात, जानापाव पहाडी और पातालपानी
4. इन्दौर से पचमढी बाइक यात्रा और रोड स्टेटस
5. भोजपुर, मध्य प्रदेश
6. पचमढी: पाण्डव गुफा, रजत प्रपात और अप्सरा विहार
7. पचमढी: राजेन्द्रगिरी, धूपगढ और महादेव
8. पचमढी: चौरागढ यात्रा
9. पचमढ़ी से पातालकोट
10. पातालकोट भ्रमण और राजाखोह की खोज
11. पातालकोट से इंदौर वाया बैतूल




Comments

  1. सुन्दर! नए नए स्थानों की अच्छी जानकारी मिल रही है! पंचमढी रात में पहुँचना साहसपूर्ण रहा! :)

    ReplyDelete
  2. नीरज भाई यात्रा बहुत शानदार चल रही है ,फोटो भी बहुत सुंदर हैं |पर शायद एक जगह पचमढ़ी की बजाय पिपरिया होना चाहिये |(लेकिन पचमढ़ी की भीड़ ने सारी योजना पर पानी फेर दिया ) बाकि आपके लेखन के तो कायल हैं ही |

    ReplyDelete
    Replies
    1. हां रूपेश जी... आपने ठीक कहा। इस त्रुटि को ठीक कर दिया है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

      Delete
  3. 400 की मी मोटर साइकिल चलाना .हिम्मत की बात है.. इससे पहले कछ यात्रा में आप ने 600 की मी बाइक चलाई थी ... क्या बात है........

    ReplyDelete
    Replies
    1. हां सर जी, रास्ता अच्छा हो तो मैदान में 400-500 किलोमीटर एक दिन में बाइक आसानी से चल जाती है।

      Delete
  4. Niraj Bhai ...maine aapke sabhi blog pade hai aur aapka fan hun, please ek baar Mandsaur (M.P.) bhi aao, yahan par world famous Lard Pashupatinath ji ka Mandir hai.Yahan ki Murti Nepal ki murti se bahut badi hai...

    Vijay Sharma

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद शर्मा जी, मन्दसौर भी अवश्य आऊंगा।

      Delete
    2. Hum intazar karenge us din ka.....please aane se pehle khabar jarur kar dena....mera mail id vijay197031@rediffmail.com hai....waise yahan bahut se jagah hai dekhne layak....

      Delete
  5. मित्र...अगर तुम्हारा एक भी इशारा अगर पिपरिया रुकने का मिला होता तो,हम निश्चित ही वही रुक जाते..और यह भी सच है की...अँधेरा होते ही मेने आप को अपने पास नहीं आने दिया...और आप से आगे गाड़ी चलता रहा..क्योकि में पचमढ़ी के पहले रुकना नहीं चाहता था..इस प्रकार में थोडा कूटनीतिक हो गया था...इसका कारण था कि हमे पचमढ़ी को अधिकतम समय देना था...बाकि शायद तुम्हे अपने आप पर विश्वास कम हो..लेकिन मुझे पक्का यकीन था की तुम अंधेरे में भी पचमढ़ी घाट आराम से पार कर लोंगे..फिर भी उस घाट पर पहली बार मोटरसाइकल चलाना वह भी घोर अँधेरे में..कतई आसान नहीं था...आप ने बहुत बढ़िया गाड़ी चलाई...

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद भाई...

      Delete
  6. आप यदि दिल्लीवासी हैं तो आपको शेष भारत में भीड नहीं दिखाई देगी।

    ---------------------------------------------------------------------------------------------------

    पूना में आ के देख लो ... नीर ज .... दिल्ली के भीड को भुल जाओगे

    ReplyDelete
    Replies
    1. हां सर जी, वैसे तो भीड हर शहर में होती है लेकिन दिल्ली इस मामले में थोडी अलग है कि दिल्ली से बाहर निकलकर यूपी और हरियाणा में भी कम से कम पचास-पचास किलोमीटर तक ट्रैफिक में कोई कमी नहीं होती। चाहे पानीपत की तरफ चले जाओ, या गुडगांव, रोहतक, फरीदाबाद, अलीगढ, हापुड या मेरठ...
      बाकी जगह केवल शहर की भीड होती है और वो हर शहर में एक से बढकर एक होती है।

      Delete
  7. इंदौर भोपाल सड़क वाकई में बहुत अच्छी बनी है । हम हमेशा जाते रहते है।और भोपाल में एक नहीं कई ताल है ।पहली बार पता चला की जानापाव से चम्बल निकली है जो राजस्थान जाकर विशाल हुई है

    ReplyDelete
    Replies
    1. चम्बल अगर जानापाव से नहीं भी निकलती हो तो इसके आसपास से ही निकलती है। लेकिन मान्यता यही है कि यह जानापाव से निकलती है। धन्यवाद आपका।

      Delete
  8. पूरे दिन भागम-भाग रही होगी।क्यों नीरज जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. हां भाई, बस दो घण्टे के लिये भोजपुर रुके थे। बाकी रास्ते में खाने-पीने के लिये।

      Delete
  9. Bhojpur ke baare men kuchh nahin likha Neeraj ji ? Aage kya likhun taarif sunna to aapko pasand nahin hai.

    Thanks,
    Mukesh ...

    ReplyDelete
  10. Are haan, maaf karna Neeraj ji maine dekha nahin thaa agali post Bhojpur par hi hai.

    Thanks,

    ReplyDelete
  11. Neeraj Ji kabhi mandsaur jarur aaiyega, yaha se karib 125 km dur dharmrajeshwar ki gufayen pandav gufa ki tarah nirash nahi karengi.

    ReplyDelete
  12. Neeraj Ji kabhi mandsaur jarur aaiyega, yaha se karib 125 km dur dharmrajeshwar ki gufayen pandav gufa ki tarah nirash nahi karengi.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब