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पचमढी: पाण्डव गुफा, रजत प्रपात और अप्सरा विहार

20 अगस्त 2015 की रात नौ बजे हम पचमढी पहुंचे। दिल्ली से चलते समय हमने जो योजना बनाई थी, उसके अनुसार हमें पचमढी नहीं आना था इसलिये यहां के बारे में कोई खोजबीन, तैयारी भी नहीं की। मुझे पता था कि यह एक सैनिक छावनी है। हमारे यहां लैंसडाउन और चकराता में भी सैनिक छावनियां हैं। दोनों के अनुभवों से मुझे सन्देह था कि इतनी रात को यहां कोई कमरा मिल जायेगा। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ। अच्छी चहल-पहल थी और बाजार भी खुला था। सुमित यहां पहले आ चुका था, इसलिये हमारा मार्गदर्शक वही था। मेरे पास समय की कोई कमी नहीं थी। मेरी बस एक ही इच्छा थी कि वापसी में पातालकोट देखना है। आज हमारे पास बाइक है और पातालकोट यहां से ज्यादा दूर भी नहीं, इसलिये इस मौके को मैं नहीं छोडने वाला था। बाकी रही पचमढी, तो जैसे भी घुमाना है, घुमा।
एक जगह बाइक खडी करके दोनों महिलाओं को वहीं छोडकर हम दोनों कमरा ढूंढने चल दिये। एक जगह देखा, 700 का मिला। हमने मोलभाव करते हुए 400 कहा, उसने मना कर दिया। दूसरे में गये। यह एक संकरी गली में था। इसने 800 बताया, हमने इससे भी 400 कहा, वो तुरन्त ही 500 पर आ गया और अगली ही बार में उसने सरेण्डर कर दिया और 400 रुपये में देने को राजी हो गया। हमने दो कमरे लिये। मुझे याद नहीं कि यह कौन सा गेस्ट हाउस था लेकिन इसकी तारीफ करने का बडा मन है। शानदार साफ-सफाई, गर्म पानी और महंगा फर्नीचर। मालिक ने बताया कि सीजन में यानी मई-जून में यह कभी भी 2000 से कम का नहीं जाता। मुझे तुरन्त विश्वास हो गया। सुमित यहां पहले आ चुका था, उसे पता था कि यहां 400 तक के भी कमरे मिल जाते हैं। लेकिन अगर सुमित न होता तो मैं इसे 800 में लेकर ही धन्य हो जाता।
खैर, वापस महिलाओं और बाइकों के पास पहुंचे। उस समय हम दोनों ने मुंह लटकाये हुए थे। साढे नौ से ऊपर का समय हो गया था। अभी अभी 400 किलोमीटर से ज्यादा बाइक चलाकर आये थे, सभी बेहद थके हुए थे, महिलाएं तो और भी ज्यादा। हमने कहा कि पचमढी में कोई कमरा खाली नहीं है, सब भरे हुए हैं। वापस पिपरिया जाना पडेगा। हालांकि हम परेशान होने का अभिनय कर रहे थे लेकिन आंखें सबकुछ कह देती हैं। सुमित ने अच्छा अभिनय किया। मेरी हंसी छूटने वाली थी दोनों महिलाओं की शक्ल देखकर। इसलिये मैं बाइक पर मुंह लटकाकर बैठ गया कि किसी को दिखाई भी न दूं और हंस भी पडूं। और वाकई दोनों महिलाएं इतनी हतप्रभ थीं कि जब हमने संकरी गली में गेस्ट हाउस के सामने बाइक रोकी, तब भी बडी देर बाद उन्हें समझ आया कि हुआ क्या था।
अगले दिन आराम से उठे। सुमित को यहां के बारे में सबकुछ पता था। फिर भी पता नहीं क्यों उसे लगा कि आज हम पूरा पचमढी घूम लेंगे और शाम तक आराम से पचमढी छोड देंगे। लेकिन जिस तरह सुमित ने मुझे बताया कि फलां फलां जगह इतनी इतनी दूर हैं, इतना-इतना पैदल चलना पडेगा तो मैंने कहा कि आज के लिये भी कमरे बुक कर देते हैं और सामान यहीं छोड देते हैं। लेकिन सुमित नहीं माना। हालांकि हमने चेक-आउट तो कर दिया लेकिन कुछ सामान यहीं रिसेप्शन पर छोड दिया कि शाम को वापस आयेंगे तो उठा लेंगे।
बाईसन लॉज पहुंचे। पचमढी वन अभयारण्य क्षेत्र में आता है तो कुछ स्थानों पर जाने के लिये जंगल विभाग से परमिट बनवाना पडता है। परमिट आसानी से बन जाता है और बाइक वालों का तो और भी आसानी से। शायद कार वालों को इन स्थानों पर जाने के लिये जंगल विभाग की जीप और एक गाइड साथ लेना पडता है लेकिन बाइक के साथ ऐसा कुछ नहीं है। बस, एक बार परमिट लो और निकल पडो कहीं भी।
सबसे पहले गये पाण्डव गुफा। पास में ही हैं। एक काफी बडी चट्टान है और इसमें कुछ छोटी छोटी गुफाएं बनी हैं। गुफाएं अधूरी हैं। बस केवल छोटे छोटे कमरे भर बना दिये हैं, बाकी अन्दर कुछ नहीं है। हालांकि हमारे पूर्वजों ने इन्हें बनाने में बडी मेहनत कर रखी है। कोई वजह ही रही होगी कि वे इस काम को पूरा नहीं कर पाये। नहीं तो क्या पता कि ये गुफाएं अजन्ता से टक्कर लेतीं। बहरहाल गुफाओं से ज्यादा सुन्दर इसका छोटा सा बगीचा है।
जल्दी ही यहां से बाहर निकलकर रुख किया रजत प्रपात की ओर। इसके पास ही अप्सरा विहार है। ये दोनों स्थान परमिट क्षेत्र में आते हैं। एक बार आपने परमिट ले लिया तो आप सभी स्थानों पर जा सकते हैं। कुछ दूर तक अच्छी सडक है, फिर खराब रास्ता है और फिर एक निरीक्षण चौकी है। बाइक वालों को केवल यहीं तक आने की अनुमति है जबकि जीप वाले इससे भी कुछ आगे नीचे तक जाते हैं। हमने बाइक यहीं खडी कीं, रजिस्टर में एण्ट्री की और रजत प्रपात देखने नीचे जाने लगे।
अच्छा खासा ढलान है। घना जंगल है इसलिये हवा नहीं लग रही थी और वातावरण उमस भरा हो गया था। अभी तो उतना पसीना नहीं आया, जितना वापस आने में आयेगा। थोडा नीचे उतरकर जीप वालों का स्टैंड है। इसके बाद भी करीब एक किलोमीटर तक नीचे उतरना होता है। नियमित आवाजाही के कारण रास्ता भटकने का कोई डर नहीं है। बढिया रास्ता और पगडण्डी बनी है। नींबू पानी की एक दुकान भी है।
सतपुडा के घने जंगल और इससे भी ज्यादा घने हैं यहां के पहाड। चूंकि सतपुडा ‘गोंडवानालैंड’ का उत्तरी सिरा है, इसलिये यहां ज्वालामुखीय चट्टानों की भरमार है। इसी की वजह से पहाड भी बिल्कुल खडे हैं। इनकी गहराईयां चकित करती हैं। ऐसी ही एक गहराई में रजत प्रपात गिरता है। पतली सी जलधारा को ऊपर से नीचे गिरते देखना अच्छा लगता है।
रजत प्रपात के ऊपरी सिरे के पास एक सुरक्षित स्थान पर अप्सरा विहार है। रजत प्रपात का व्यू पॉइंट अप्सरा विहार से कुछ दूर है। व्यू पॉइंट से पूरा प्रपात दिखता है जबकि अप्सरा विहार पर इसी पानी में थोडी मस्ती की जाती है। सुमित ने बताया कि इसका नाम अप्सरा विहार क्यों पडा। यह स्थान सैनिक छावनी था, अंग्रेज यहां खूब आते थे। तो गोरी-गोरी अंग्रेजन यहां नहाती थीं, पानी में मस्ती करती थीं तो स्थानीय लोग कहने लगे- अप्सरा विहार।
पता नहीं यह कहानी कितनी सच्ची है लेकिन पानी में क्रीडा करने के लिये यह स्थान अच्छा है। मैं चप्पल पहने था इसलिये चट्टानों से नीचे पानी में उतरने से बच रहा था। लेकिन भला हो इन आग्नेय चट्टानों का कि इन पर फिसलन नहीं है। फिर तो हम सब पानी में उतरे। पानी गहरा भी नहीं था और बहाव भी तेज नहीं था। फिर भी मानसून में ऐसी जगहों पर जाने से बचना चाहिये। मस्ती अपनी जगह है और सुरक्षा अपनी जगह। यही पानी थोडा ही आगे जाकर रजत प्रपात के रूप में कई सौ फीट नीचे गिर रहा है लेकिन घने जंगल और खडी चट्टानों के कारण उस स्थान तक जाने का रास्ता सूझता भी नहीं है।
वापस चलने लगे तो अब चढाई थी। सबसे ज्यादा परेशानी श्रीमति सुमित को हुई। वे एक डॉक्टरनी हैं, इसलिये एक बार सांस लेने रुके तो बोली- हार्ट बीट 85 तक पहुंच गई हैं। नींबू पानी पीया। अच्छा लगा। वैसे भी पसीना-पसीना होने के बाद नींबू पानी तो क्या, साधारण पानी भी अच्छा ही लगता है।
कुछ लोग सामने से आ रहे थे। वे भी रजत प्रपात और अप्सरा विहार देखने जा रहे थे। उनमें एक गोरी-चिट्टी लडकी थी और उसने छोटी सी काले रंग की स्कर्ट और काली ही टाइट टी-शर्ट पहन रखी थी। भला निगाह क्यों न फिसले? मैं उसे पीछे मुड मुडकर देखता रहा जब तक कि निशा ने नहीं कहा- सामने देख।
बाइक उठाई और चल दिये किसी और स्थान को देखने।

गेस्ट हाउस का कमरा

पाण्डव गुफा

पाण्डव गुफाएं अधूरी हैं।

लेकिन यहां का बगीचा अच्छा लगता है।






रजत प्रपात की ओर

बाइक यहीं तक जाती हैं, इससे आगे जीपें जाती हैं। हालांकि बाइक वाले इससे आगे पैदल जा सकते हैं।





रजत प्रपात (Silver Fall)



अप्सरा विहार

अप्सरा विहार




अगला भाग: पचमढी: राजेन्द्रगिरी, धूपगढ और महादेव


1. भिण्ड-ग्वालियर-गुना पैसेंजर ट्रेन यात्रा
2. महेश्वर यात्रा
3. शीतला माता जलप्रपात, जानापाव पहाडी और पातालपानी
4. इन्दौर से पचमढी बाइक यात्रा और रोड स्टेटस
5. भोजपुर, मध्य प्रदेश
6. पचमढी: पाण्डव गुफा, रजत प्रपात और अप्सरा विहार
7. पचमढी: राजेन्द्रगिरी, धूपगढ और महादेव
8. पचमढी: चौरागढ यात्रा
9. पचमढ़ी से पातालकोट
10. पातालकोट भ्रमण और राजाखोह की खोज
11. पातालकोट से इंदौर वाया बैतूल




Comments

  1. नीरज जी, मजा आ गया!

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  2. Ek aur badhiya lekh, photo bhi sundar aaye hai.... Neeraj bhai is sthaan par jaane ke liye uttam samay kaun sa hai aur nikattam railway station bhi bata do...

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    1. प्रदीप भाई... सर्वोत्तम समय है मानसून और निकटतम रेलवे स्टेशन है पिपरिया।

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  3. खतरों के खिलाड़ी
    पत्नी संग दूसरी पर नजर

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  4. Bhai bhabi ji se bach ke najar maaro

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  5. सतपुड़ा की रानी पचमढ़ी की खूबसूरती देखते ही बनती है .. बहुत अच्छा लगा यात्रा वृतांत और फोटो तो बहुत ही लाजवाब... .. पचमढ़ी की वादियों में घूमने फिरने को फिर मन तरंगित हो उठा है ... फिछले वर्ष जून में ऑफिस से ट्रेनिंग में गए तो एक ब्लॉग पोस्ट लिखी थी.. आप भी नज़र देखिये ...
    http://kavitarawatbpl.blogspot.in/2014/06/blog-post.html

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  6. हम लोग होटल अमर विलास जवाहर चोक पर रुके थे
    पहली सुबह ही चेक आउट करने का पहला कारण मेरा
    लालची मन था जो कह रहा था की शाम को 400 रु से कम में
    दूसरा होटल ढूंढेंगे.
    समय रहते मिला तो ठीक नहीं तो अमर विलास जिंदाबाद और
    दूसरा कारण था..हो सकता था हम में से किसी का मन पचमढ़ी में
    दूसरी रात रुकने का न हो..जिसकी सम्भावना कम
    थी..खेर जो भी हो..पचमढ़ी में दोनों दिन यादगार रहे...

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    1. 400 रुपये से भी कम... गज्जब...
      वैसे कभी कभी ऐसा करने से न इधर से रहते हैं, न उधर के।

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  7. Neerajji. Mote hote jaa rahe ho.

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    1. हां जी, बिल्कुल। खराब दिनचर्या का नतीजा।

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  8. नीरज जी आपका लेख हमे बहुत पसंद आया ।Seetamni. blogspot. in

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

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