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एक विचित्र रेल-यात्रा

7 मार्च 2017
आला हज़रत एक्सप्रेस को इज़्ज़तदार ट्रेन नहीं माना जाता। भुज और बरेली के बीच चलने वाली इस ट्रेन का ज्यादा समय राजस्थान में गुज़रता है। आप किसी राजस्थानी से, ख़ासकर इसके मार्ग में आने वाले राजस्थानी से पूछिए इसके बारे में। वह इसे थकी हुई और बेकार ट्रेन बताएगा। और यह बेकार इस मायने में है कि इसमें भीड़ बहुत होती है। इतनी भीड़ कि सामान्य और शयनयान डिब्बों में ज्यादा अंतर नहीं होता।
ट्रेन आधा घंटा लेट थी और जब मैं पुरानी दिल्ली के छह नंबर प्लेटफार्म पर सीढ़ियों से उतर रहा था तो ट्रेन भी धीरे-धीरे चल रही थी। पता चलना मुश्किल था कि ट्रेन आ रही है या आने के बाद चल चुकी है। लेकिन इस थकी हुई ट्रेन की थकी हुई सवारियों का दरवाजों पर खड़े होना ही कह रहा था कि ट्रेन अभी-अभी आयी है। प्लेटफार्म पर भी काफी भीड़ थी और रुकने से पहले ही उतरने वालों और चढ़ने वालों का संघर्ष शुरू हो गया। 
जब सब शांत हो गया तो मैं डिब्बे में चढ़ा - एस चार में। सैंतीस नंबर वाली शायिका मेरी थी। यह मध्य शायिका होती है और दिन में किसी काम की नहीं होती। मैं इस बात को जानता था और किसी भी बहस के लिए तैयार नहीं था। अपने कूपे में बारह लोगों को बैठे देख चुपचाप अपने लिए जगह बनायी और सिकुड़कर बैठ गया। ऊपर वाली बर्थों पर लोग सोये हुए थे। नीचे वाले बैठे-बैठे ऊँघ रहे थे।





ट्रेन चल पड़ी तो एक पंखे में हलचल हुई। खड़खड़ाता हुआ यह चल पड़ा। गर्मी से परेशान यात्रियों ने बाकी दो पंखों को भी चलाने का प्रयास किया, लेकिन वे नहीं चले। सभी के बंद रहने से अच्छा है कि एक तो चलता रहे। फिर ट्रेन भी चल पड़ी तो थके हुए यात्रियों ने इससे ही संतोष कर लिया। मैं सबसे ज्यादा थकेला था, इसलिए मुझे सबसे ज्यादा संतोष हुआ।
टी.टी.ई. आया - टिकट जाँचने। इस कूपे में एक महिला और उसके साथ एक पुरुष साधारण टिकट वाले थे। महिला चालाक थी। उसने टिकट में छुपाकर सौ का एक नोट टी.टी.ई. को पकड़ा दिया। उसने चुपचाप इसे जेब में रख लिया और उनके टिकट पर पेन से निशान बनाकर वापस दे दिया। भगवान जाने इस निशान का मतलब।
दो यात्री एम.एस.टी. वाले थे। दोनों ने ही थकी आवाज में टी.टी.ई. को बताया - एम.एस.टी.। और टी.टी.ई. ने उनके सामने समर्पण कर दिया - किसी की भी एम.एस.टी. चेक नहीं की। चेक करता तो मुझे यकीन है कि दोनों बेटिकट मिलते। 
लेकिन ऐसी ट्रेन में - थके लोगों से भरी ट्रेन में - थका हुआ अकेला टी.टी.ई. किस किससे उलझता? उसे भी अपने कागज पूरे करने हैं, ड्यूटी पूरी करनी है। उम्र बीत गयी उसकी यह काम करते करते, शांति से ही समय काट लेने में भलाई है।
गाजियाबाद से पहले ट्रेन रुक गयी। बराबर में देहरादून जनशताब्दी आ खड़ी हुई। डिब्बे इतने गंदे कि लगता जैसे लोगों ने और रेलवे ने स्वच्छ भारत अभियान की ऐसी-तैसी करने की कसम खा ली हो। रेलमंत्री रोज ट्विटर और फेसबुक पर साफ़-सुथरे स्टेशनों  के फोटो दिखाकर लोगों को जागरुक करते हैं, लेकिन इस ट्रेन को देखकर लग रहा था कि वो सारी गंदगी इस ट्रेन पर लीप दी गयी हो। 
जनशताब्दी मेरठ की तरफ़ जायेगी, इसलिये गाज़ियाबाद के प्लेटफार्म एक पर पहुँचेगी, जबकि मेरी आला हज़रत दो पर। जनशताब्दी खिसकने लगी और मेरी ट्रेन नहीं खिसकी तो लगा कि दो नंबर पहले ही कोई ट्रेन खड़ी होगी। जनशताब्दी के जाते ही उसी लाइन पर कलिंग उत्कल आ गयी। रुक गयी। मैं समझ गया कि आगे जनशताब्दी जब एक नंबर को खाली कर देगी तो कलिंग उत्कल को उस पर लिया जायेगा। आला हज़रत चल पड़ी। उत्कल पीछे छूट गयी। ध्यान दिया तो उसमें बिजली का इंजन लगा था। मतलब अब कम से कम हरिद्वार तक बिजली की लाइन बन गयी है। जनशताब्दी में कौन-सा इंजन था, ध्यान नहीं दिया।
आला हज़रत गाज़ियाबाद से निकलते ही रुक गयी। जबकि इसे रुकना नहीं चाहिये था। इसका जवाब थोड़ी ही देर में मिल गया, जब कानपुर शताब्दी आगे निकली। कानपुर शताब्दी को उन्होंने एक नंबर पर लिया होगा, तभी तो यह हमारी बायीं तरफ़ से गुज़री। यह गाज़ियाबाद वालों की ख़राब प्लानिंग है। आला हज़रत के निकलते ही शताब्दी को दो नंबर पर लगाते, एक पर उत्कल आती, और तीनों में से कोई भी ट्रेन रोकनी न पड़ती। अब शताब्दी को निकालने के लिये पहले उत्कल रोकी, फिर आला हज़रत भी रोक दी।
शताब्दी निकल गयी तो दाहिनी तरफ़ से राँची गरीब रथ जाने लगी। अब हमारी ट्रेन को सिग्नल मिलेगा। मैं पैरों को सीधा करने सीट से उठा और दरवाजे पर चला गया - कंधे पर अपना बैग लटकाये। दो सौ मीटर पीछे ही गाज़ियाबाद स्टेशन था। एक नंबर पर उत्कल खड़ी थी। बराबर में कई मालगाड़ियाँ थीं। दाहिनी तरफ़ राँची गरीब रथ भी रुक गयी थी। तभी आला हज़रत को पीला सिग्नल मिल गया। सीटी बजायी और खिसकने लगी।
तभी अचानक...
मैं नीचे उतर गया। पता नहीं क्यों? मुझे इस ट्रेन से बरेली तक जाना था। वहाँ से शाहजहाँपुर जाना था। कल शाहजहाँपुर से पीलीभीत और मैलानी व पलिया कलां, नेपालगंज रोड़, बहराइच तक मीटरगेज में यात्रा करनी थी। 
लेकिन उतर क्यों गया, मेरे पास कोई जवाब नहीं है। शायद मैं सोना चाहता था, शायद ये, शायद वो... पता नहीं।
वापस गाज़ियाबाद स्टेशन पहुँचा। डिब्रूगढ़ राजधानी जनरेटर का शोर मचाती हुई धीरे-धीरे निकल गयी। फिर दो नंबर पर कटिहार जाने वाली आम्रपाली आ गयी। चमत्कार! इसमें ईरोड़ का WAG 7 इंजन लगा था। मैं इसका फोटो लेना चाहता था, लेकिन 100 मीटर दूर इंजन के नज़दीक तक जाने का आलस कर गया। 
उधर तीन नंबर पर ऋषिकेश-दिल्ली पैसेंजर आ चुकी थी। मैंने शाहदरा का लोकल टिकट लिया, तब तक यह पैसेंजर दिल्ली की तरफ़ जा चुकी थी। तभी एनाउंसमेंट हुआ कि नई दिल्ली के रास्ते पानीपत जाने वाली ई.एम.यू. चार नंबर से चलने को तैयार है। मैं लपककर इसमें जा चढ़ा। शाहदरा जाने के लिये ऋषिकेश पैसेंजर मिलेगी तो ठीक, अन्यथा साहिबाबाद से ऑटो पकड़ लूँगा।
ट्रेन हिंडन के पास रुक गयी। झाँककर देखा, इसी लाइन पर कुछ ही दूरी पर ऋषिकेश पैसेंजर खड़ी है। कई यात्री इसमें से उतरकर उसमें चढ़ रहे थे। दोनों ट्रेनों के बीच में कोई सिग्नल नहीं था। हो सकता है कि ई.एम.यू. में कोई सेफ्टी डिवाइस लगी हो, अन्यथा ई.एम.यू. का ड्राइवर आसानी से सामने खड़ी ट्रेन में टक्कर मार सकता था। रेलवे को मैं अच्छी तरह जानता हूँ। यह इतना बेवकूफ़ नहीं है कि थोड़ा-सा ट्रैफिक कम करने के लिये ट्रेनों को मेन लाइन पर इस तरह खड़ा कर दे। अवश्य ही कोई सेफ्टी उपकरण लगा होगा - मेट्रो ट्रेनों की तरह।
मैं जब तक निर्णय कर पाता, तब तक ऋषिकेश पैसेंजर खिसकने लगी। ई.एम.यू. भी उसके पीछे-पीछे लग ली। मोहननगर पुल के पास एक लाल सिग्नल था, ई.एम.यू. रुक गयी। एक मिनट बाद ही फिर चल पड़ी - लाल सिग्नल को ही क्रॉस करके। और फिर से ऋषिकेश पैसेंजर के पीछे जा खड़ी हुई। बराबर वाली लाइन पर अलीगढ़-दिल्ली ई.एम.यू. आ गयी, उसके पीछे गाज़ियाबाद-पलवल ई.एम.यू.। उन दोनों ट्रेनों की भी यही दौड़ चल रही थी। मज़ा आ रहा था इन चारों ट्रेनों की रनिंग देखने में। 
जब मेरी वाली ट्रेन साहिबाबाद पहुँची, तब तक वहाँ ऋषिकेश पैसेंजर का नाम भी नहीं बचा था। वह जा चुकी थी। लेकिन पीछे ही अलीगढ़-दिल्ली ई.एम.यू. आ रही थी, जिसने मुझे कुछ ही देर में शाहदरा पहुँचा दिया।




मैंने इस यात्रा के लिये दो दिनों की छुट्टियाँ ले रखी थीं। लेकिन पता नहीं क्या हो गया कि ट्रेन से उतर गया और यह बहुप्रतीक्षित यात्रा रद्द कर दी। 
रात में मज़े से चादर तानकर सोया और अगले दिन दोपहर तक उठा। फिर से रेलयात्रा की तलब लग गयी और जालंधर जाने का मन बना लिया। कल जालंधर से होशियारपुर, नकोदर और जैजों दोआबा की यात्रा करूँगा। दिल्ली से उधर जाने के लिये सर्वोत्तम ट्रेन है होशियारपुर एक्सप्रेस (14011/12)। हाथों-हाथ भी स्लीपर भी कन्फर्म बर्थ मिल जाती है। अगर आपको अमृतसर भी जाना है, तो गोल्डन टेम्पल मेल के अलावा कोई विकल्प नहीं है। लेकिन इसमें महीनों पहले भी कन्फर्म बर्थ नहीं मिलती। तो बेहतर है कि होशियारपुर एक्सप्रेस में जालंधर सिटी तक मजे से सोते हुए जाओ और वहाँ से अमृतसर रह ही कितना जाता है? ऐसा ही वापस आने में हो सकता है।
तो मैंने आने-जाने की टिकट इसी ट्रेन में कर ली। पौने नौ बजे पुरानी दिल्ली पहुँच गया और ठीक नौ बजे ट्रेन चल पड़ी। सामने वाली बर्थ पर एक लड़का लैपटॉप लिये बैठा था। उससे ऐसे ही उड़ता-उड़ता-सा परिचय हुआ। उसे भी जालंधर ही जाना था। एक यात्री अंबाला से चढ़ेगा और होशियारपुर जायेगा। दरवाजे के पास आरक्षण-चार्ट लगा होता है, सब जानकारी मिल गयी।
रात बारह बजे आँख खुली। ट्रेन रुकी हुई थी। थोड़ी दूरी पर चाय-चाय की आवाज़ भी आ रही थी। इसका मतलब कोई बड़ा स्टेशन है। शायद अंबाला हो। मैं फिर सो गया। अब ढाई बजे आँख खुली। ट्रेन रुकी हुई थी। शायद लुधियाना हो। और फिर सवा तीन बजे उठा। ट्रेन रुकी हुई थी। मैंने लेटे-लेटे ही इंटरनेट पर ट्रेन की स्थिति देखी - करनाल बता रहा था। ये रेलवे वाले आजकल बड़ी गड़बड़ करने लगे हैं। आलसियों ने करनाल के बाद ट्रेन का स्टेटस अपडेट ही नहीं किया। सोने की जल्दी लगी रहती होगी। इतनी अच्छी सुविधा है यह, सबके काम आती है, लेकिन इस आलसियों ने इसका बेड़ागर्क करना शुरू कर दिया है। चार गालियाँ भी दीं उन्हें।

साढ़े तीन बजे यह ट्रेन जालंधर सिटी पहुँचती है। शायद यह जालंधर सिटी ही हो। ट्रेन में थोड़ी चहल-पहल थी। एकाध अलार्म भी बज रहे थे। ज्यादातर यात्री यही उतरने वाले थे। मैं अपना सामान समेटकर बैग पैक करने लगा। देखा कि वो लैपटॉप वाला लड़का बाहर से एक कप चाय लेकर आया। चूँकि उसे जालंधर सिटी ही उतरना था, तो इसका मतलब यह जालंधर सिटी नहीं है। होता तो वो लड़का उतर चुका होता। इसका मतलब जालंधर छावनी है। कोई बात नहीं, यहाँ से चलेगी तो सिटी पहुँचने में दस मिनट भी नहीं लगेंगे। मैं अपनी चादर की तह करने लगा।
उस लड़के से आँखें मिलीं। अब जब आँखें मिल गयीं तो शब्दों का आदान-प्रदान भी हो ही गया - कौन-सा स्टेशन है?
- करनाल ही खड़ी है अभी तक?
मैं जैसे आसमान से गिरा। करनाल? बाहर निकला तो वास्तव में यह करनाल ही था। इसका मतलब रात बारह बजे भी यह करनाल ही थी और ढाई बजे भी यहीं थी। बराबर में अमृतसर जाने वाली सरयू-यमुना एक्सप्रेस भी खड़ी थी। ज़रूर आगे कोई दुर्घटना हो गयी है। अन्यथा इस मार्ग पर इस तरह ट्रेनें खड़ी नहीं हो सकतीं। पता नहीं कब यह ट्रेन यहाँ से चले, कब जालंधर पहुँचे। इससे अच्छा है कि दिल्ली लौट जाओ। यह भी अच्छा ही है कि करनाल जैसे बड़े स्टेशन पर खड़ी है, जहाँ से दिल्ली जाने के लिये बसें भी भरपूर हैं और ट्रेनें भी। कोई छोटा स्टेशन होता तो समस्या हो जाती।

पता चला कि कुरुक्षेत्र के आसपास कहीं किसी गैस ढोने वाली मालगाड़ी में लीकेज हो गयी है। उसे ठीक करने का काम चल रहा है। सुरक्षा की दृष्टि से इधर की ट्रेनों को इधर रोक दिया और उधर ही ट्रेनों को उधर। लेकिन कुछ ही देर में जब सरयू यमुना एक्सप्रेस अंबाला की तरफ़ चल पड़ी तो लगने लगा कि अब सब ठीक हो गया है। सरयू यमुना के पीछे-पीछे होशियारपुर वाली भी चली गयी। अंबाला की तरफ़ से पूजा आ रही थी, मैंने इसी का टिकट ले लिया और शयनयान में एक खाली पड़ी बर्थ पर जाकर सो गया। आराम से दो घंटे बाद सब्जी मंडी उतरा और सीधे प्रताप नगर से मेट्रो पकड़कर शास्त्री पार्क। धीरज ने दरवाजा खोला तो आश्चर्यचकित रह गया - तू तो कल आने वाला था? 
तो यह थी मेरी बड़े दिनों बाद की गयी ट्रेन यात्रा। भले ही कुछ भी हुआ हो, लेकिन आनंद आ गया। मुझे महसूस होने लगा था कि ट्रेन यात्राओं की, ट्रेनों की जानकारी की धार अब कुंद पड़ने लगी है, लेकिन इन दो विचित्र यात्राओं के बाद अब फिर से धार पैनी हो गयी है। आने वाले समय में आपको भरपूर ट्रेन-यात्राएँ पढ़ने को मिलेंगी।




Comments

  1. सचमुच विचित्र यात्रा थी। मैं अगर होता तो कंफ्यूज हो गया होता। ट्रेंस के विषय में मेरा ज्ञान नगण्य ही है। इधर भी इस्तेमाल की गयी शब्दावली में कई शब्द के अर्थ ही पता नहीं चले। पढ़ने में मज़ा आया।

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    1. धन्यवाद विकास जी,
      कौन-से शब्द का अर्थ पता नहीं चला? शायद कुछ मदद कर सकूँ।

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    2. एम.एस.टी.,मीटरगेज,ईरोड़ का WAG 7 इंजन,ई.एम.यू.
      एक्चुअली मैंने ट्रैन में बहुत कम सफर किया है तो इस से जुड़े साधारण शब्दों का भी ज्ञान नहीं है। जैसे आपने देखते ही बता कि इंजिन बिजली का है जो कि मेरे लिए पहचानना मुश्किल था। फिर चूंकि बिजली की लाइन हरिद्वार तक ही थी तो उधर जाकर क्या इंजन बदलेगा या एक ही इंजन को दोनों तरीकों से इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसे ही ख्याल मन में आया था।

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    3. एम.एस.टी. - मंथली सीजन टिकट - यह दैनिक यात्रियों के लिये होता है। उनका एक पास बन जाता है, जिससे वे एक ही बार महीने भर का किराया अदा करके हासिल करते हैं।
      मीटरगेज - छोटी लाइन की ट्रेन।
      ईरोड़ का WAG7 इंजन - ईरोड़ तमिलनाडु में एक बड़ा जंक्शन है। WAG7 इंजनों का एक प्रकार है। तो तमिलनाडु का इंजन जब पंजाब और बिहार के बीच चलने वाली ट्रेन में लगा मिलेगा, तो आश्चर्य होगा ही। रेलवे में अक्सर ऐसे बेमेल इंजन लगे नहीं मिलते।
      ई.एम.यू. - इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट - बिजली की लाइनों पर चलने वाली लोकल ट्रेनों को ई.एम.यू. भी कहते हैं।
      कलिंग उत्कल एक्सप्रेस में मैंने बिजली का इंजन लगा देखा था। यह ट्रेन हरिद्वार तक ही जाती है, तो अगर हरिद्वार से आगे बिजली की लाइन नहीं है, तब भी इंजन बदलने की आवश्यकता नहीं।

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    4. कलिंग उत्कल का इंजन दोनों तरीके से काम करता है ?

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  2. आप के लिए यह एक विचित्र रेल-यात्रा थी तो पाठकों के लिए भी यह एक एक विचित्र रेल-यात्रा थी क्योंकि इसे पढ़कर ठीक से समझ लेना विचित्र ही है।

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  3. खूबसूरत लेखन शैली,एक चंचल घुमक्कड़ मन दिल से लिखे गये से लिखे गये शब्द,और हर शब्द से झलकता घूमने का दीवानापन,चाहे रेल यात्रा हो या हमारे खूबसूरत हिमालय के देवदार,चीड़ के जंगलो मे बाइक चलाने की आनंद,आपका हर लेख आपके समकालीन घुमक्कड़ो मे आपको सबसे आगे रखता है.
    परीस्थितिओ की मजबूरिया है ए गालिब,
    बनना तो हम भी चाहते है नीरज जाट.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद राकेश जी...

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  4. Gazab ki yatra. Trains ka gyan shandar hai aapka. Agar aapki jagah mai hota to mere liye yah yatra sirf 'Abba-Dabba-Jabba' hi hoti. Mai to 1 ghante se ruki train se bhi neeche nahi utarta ki kahi chal na de.
    Lekin ek train hi hai jo pura 'Bharat Darshan ek coach me hi karwa deti hai

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद उमेश जी...

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  5. शानदार रेल यात्राए जो पर​वान चढने से पहले खत्म हो गई

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  6. Bahut badiya likha hai... kai din baad thake shabad ka itna upyog dekha.
    likhne ke liye bahut bahut dhanyawad.

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  7. वाह नीरज जी क्या शानदार यात्रा थी क्या वास्तव में यह यात्रा ही थी या प्रभु जी को हक़ीक़त दिखाता आइना ?😱😱😱

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  8. You are a computer Neeraj . May be the best Hindi travel blogger.

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  9. लेखन शैली में आंचलिकता एक विशेष शैली जो पाठकों को बांध कर रखती है। मेरठ से हैं तो आप की जगह तू और रेल्वे से हैं तो रेल शब्दावली, एक विशिष्टता ही तो है। यात्राओं का जीवन्त विवरण और शानदार फोटोग्राफी आपकी विशेषता हो गई है। मैं तुलना तो किसी की किसी से नहीं कर रहा हूँ, मगर शिवानी और फणीश्वर रेणु के लेखन की मुख्य विशेषता आंचलिकता ही है।
    बहुत शुभकामनाऐं।

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  10. Very nice Neeraj.The great thing about your writing is we can visualise your journey with all details and thinking like we are also experiencing same .Best wishes for future plans.

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  11. आदमी की चकरघिन्नी बना दिए ! हाहाहा ! कौन सोचता है इतना ? और क्यों ! यूँ ही कोई नीरज जाट नहीं बन जाता है :-)

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब