पिछले दिनों दो पुस्तकें पढ़ने को मिलीं। इन दोनों के बारे में मैं अलग-अलग लिखने वाला था, लेकिन एक कारण से एक साथ लिख रहा हूँ। पहले चर्चा करते हैं ‘तिब्बत तिब्बत’ की। इसके लेखक पैट्रिक फ्रैंच हैं, जो कि मूल रूप से ब्रिटिश हैं। हिंदी अनुवाद भारत पाण्डेय ने किया है - बेहतरीन उच्च कोटि का अनुवाद। लेखक की तिब्बत और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में गहरी रुचि साफ़ झलकती है। वे भारत में मैक्लोड़गंज में तिब्बतियों से काफ़ी हद तक जुड़े हुए भी हैं और उनके साथ काफ़ी समय व्यतीत किया है। 1986 में उन्होंने पर्यटक बनकर तिब्बत की यात्रा की थी। तो यह पुस्तक मूलतः एक यात्रा-वृत्तांत ही है, लेकिन इसमें तिब्बत और चीन के साथ संबंधों पर सबकुछ लिखा गया है। कहीं भी लेखक भटकता हुआ महसूस नहीं हुआ। उन्होंने तिब्बत की यात्रा अकेले की और दूर-दराज़ में तिब्बतियों के साथ भी काफ़ी समय बिताया, जो तिब्बत में एक बहुत बड़ी बात थी। ऐसा होना आज भी बड़ी बात है। कुल चौबीस अध्याय हैं। शुरूआती अध्यायों में तिब्बत और निर्वासित तिब्बतियों से परिचय कराया गया है। लेखक चीन पहुँच जाता है और अपनी यात्रा भी आरंभ करता है। हम छठें अध्याय से चर्चा
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग